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गृह प्रकरणम्
( ५३ ) एयाई चिय पुव्वा दाहिणपच्छिममुहेण बारेण। नामंतरेण अन्नाई तिनि मिलियाणि चउसट्ठी ॥ १५ ॥
ऊपर जो शांतनादि क्रमसे सोलह घर कहे हैं, उन प्रत्येक के पूर्व दक्षिण और पश्चिम मुख के द्वार भेदों को दूसरे तीन २ घरों के नाम क्रमशः इनमें मिलाने से प्रत्येक के चार २ रूप होते हैं। इस तरह इन सब को जोड़ लेने से कुल चौसठ नाम घर के होते हैं ॥६५॥ दिशाओं के भेदों से द्वार को स्पष्ट बतलाते हैंतथाहि-संतणमुत्तरबारं तं चिय पुवुमुहु संतदं भणियं।
जम्ममुहवड्ढमाणं अवरमुहं कुक्कुडं तहन्नेसु ॥ १६ ॥
जैसे-शांतन नाम के घर का मुख उत्तर दिशा में, शान्तिद घर का मुख पूर्व दिशा में, वर्धमान घर का मुख दक्षिण दिशा में और कुक्कुट घर का मुख पश्चिम दिशा में है । इसी तरह दूसरे भी चार २ घरों के मुख समझ लेना चाहिये । ये मैंने पहिले से ही खुलासा पूर्वक लिख दिये हैं ॥१६॥ अब सूर्य आदि पाठ घरों का स्वरूपयथा-अग्गे* अलिंदतियगं इकिकं वामदाहिणोवरयं ।
थंभजुग्रं च दुसालं तस्स य नामं हवइ सूरं ॥ १७ ॥
जिस द्विशाल घर के आगे तीन अलिन्द हो, तथा बांयी और दाहिनी तरफ एक २ शाला स्तंभयुक्त हो तो यह 'सूर्य' नाम का घर कहा जाता है ॥१७॥
वयणे य चउ अलिंदा उभयदिसे इक्कु इक्कु ग्रोवरयो । नामेण वासवं तं जुगअंतं जाव वसइ धुवं ॥ १८ ॥
जिस द्विशाल घर के आगे चार अलिन्द हो, तथा बांयी और दाहिनी तरफ एक २ शाला हो तो यह 'वास' नाम का घर कहा जाता है। इस में रहने वाले युगान्त तक स्थिर रहते हैं ॥१८॥
* 'भाएं' इति पाठान्तरे।
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