________________
गृह प्रकरणम्
उज्जोअगेहपच्छइ दाहिणए दु गइ भित्तिअंतरए। जह हुंति दो भमंती विलासनामं हवइ गेहं ॥ ११ ॥
उद्योत घर के पीछे और दाहिनी तरफ दो २ अलिन्द दीवार के भीतर हो जैसे घर के चारों ओर घूम सके ऐसे दो प्रदक्षिणा मार्ग हो ऐसे घर का मुख यदि उत्तर में हो तो वह 'विलाश' नाम का घर कहा जाता है । इसी घर का मुख यदि पूर्व दिशा में हो तो 'बहुनिवास,' दक्षिण दिशा में हो तो 'पुष्टिद' और पश्चिम में मुख हो तो 'क्रोधसन्निभ' घर कहा जाता है ॥६१॥ - तिं अलिंद मुहस्सग्गे मंडवयं सेसं विलासुव्व । तं गेहं च महंतं कुणइ महड्ढि वसंताणं ॥१२॥
विलास घर के मुख आगे तीन अलिन्द और मंडप हो तो यह 'महान्त' घर कहा जाता है । इसमें रहनेवाले को यह घर महा ऋद्धि करनेवाला है । इसी घर का मुख यदि पूर्व दिशा में हो तो 'माहित', दक्षिण दिशा में हो तो 'दुःख' और पश्चिम दिशा में हो तो 'कुलच्छेद' घर कहा जाता है ॥१२॥
मुहि ति अलिंद समंडव जालिय तिदिसेहि दुदु य गुजारी। मज्झि वलयगयभित्ती जालिय य पयाववद्धणयं ॥ १३ ॥
जिस द्विशाल घर के मुख आगे तीन अलिन्द, मंडप और खिड़की हों तथा तीनों दिशाओं में दो २ गुंजारी (अलिन्द ) हों तथा मध्य बलय के दीवार में खिड़की हो, ऐसे घर का मुख यदि उत्तर दिशा में हो तो 'प्रतापवर्द्धन', पूर्व दिशा में हो तो 'दिव्य', दक्षिण दिशा में हो तो 'बहुदुःख' और पश्चिम दिशा में मुख हो तो 'कंठछेदन' घर कहा जाता है ॥६॥
पयाववद्धणे जइ थंभय ता हवइ जंगम' सुजसं । इन सोलसगेहाई सव्वाइं उत्तरमुहाई ॥१४॥
, 'जंगजं' । इति पाठअन्तरे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org