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गृह प्रकरणम्
पुरो थलिंदतियगं तिदिसिं इक्किक थंभयपट्टसमेयं सीधरनामं च तं संतत घर के मुख आगे तीन अलिन्द और बाकी की तीनों दिशाओं में एक २ गुंजारी (अलिन्द ) हो, तथा शाला में पद्दारु ( स्तंभ और पीढे ) भी हो तो यह 'श्रीधर' घर कहा जाता है। शांतिद घर के मुख आगे तीन अलिन्द और तीनों दिशाओं में एक २ गुंजारी, स्तंभ और पीढे सहित हो ऐसे घर का नाम 'सर्वकामद' कहा जाता है । वर्द्धमान घर के मुख आगे तीन अलिन्द और तीनों दिशाओं में एक २ अलिन्द, स्तंभ और पीढे सहित हो तो यह 'पुष्टिद' घर कहा जाता है । कुक्कुट घर के मुख आगे तीन अलिन्द और तीनों दिशाओं में एक २ अलिन्द दद्दा समेत हो तो यह 'कीर्तिविनाश' घर कहा जाता है ॥८७॥
हवइ गुंजारी । गेहं ॥ ८७ ॥
गुंजारियल तिहुं दिसि दुलिंद मुहे य थंभपरिकलियं । मंडवजालियसहिया सिरिसिंगारं तयं बिंति ॥ ८८ ॥
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जिस द्विशाल घर की तीनों दिशाओं में दो २ गुंजारी और मुख के श्रागे दो अलिन्द, मध्य में षद्दारु और अलिन्द के आगे खिड़की युक्त मंडप हो ऐसे घर का मुख यदि उत्तर दिशा में हो तो यह 'श्रीशृंगार', पूर्व दिशा में मुख हो तो यह 'श्रीनिवास', दक्षिण दिशा में मुख हो तो यह 'श्रीशोभ' और पश्चिम दिशा में मुख हो तो यह 'कीर्तिशोभन' घर कहा जाता है ||८||
तिनि लिंदा पुरो तस्सग्गे भदु सेसपुव्व्व । तं नाम जग्गसीधर बहुमंगल रिद्धि-श्रावासं ॥ ८१ ॥
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जिस द्विशाल घर के मुख आगे तीन अलिन्द हों और इनके आगे भद्र हो बाकी सब पूर्ववत् अर्थात् तीनों दिशा में दो २ गुंजारी, बीच में पद्दारु (स्तंभ- पीढे ) और अन्द के आगे खिड़की युक्त मंडप हो ऐसे घर का मुख यदि उत्तर दिशा में हो तो यह 'युग्मश्रीधर' घर कहा जाता है, यह घर बहुत मंगलदायक और ऋद्धियों का स्थान है। इसी घर का मुख यदि पूर्व दिशा में हो तो 'बहुलाभ,' दक्षिण दिशा में हो तो 'लक्ष्मीनिवास' और पश्चिम में मुख हो तो 'कुपित' घर कहा जाता है || दुलिंद - मंडवं तह जालिय पिट्ठेग दाहिगो दु गई । भित्तितरिथंभजुया उज्जोयं नाम धणनिलयं ॥ १० ॥
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