________________
गृह प्रकरणम्
(४५)
अनेक तरह के घर बनते हैं, विशेष जानने के लिये समरांगण और राजवल्लभ आदि ग्रंथ देखना चाहिये। शान्तनादि घरों के लक्षण
केवल ग्रोवरयदुगं संतणनामं मुणेह तं गेहं । तस्सेव मज्झि पढें मुहेगालिंदं च सत्थियगं ॥२॥
फक्त दो शालावाले घर को 'शान्तन' नाम का घर कहते हैं । अर्थात् जिस घर में उत्तर दिशा के मुखवाली दो शाला (हस्तिनी) हो वह 'शान्तन' नाम का घर जानना चाहिये । पूर्व दिशा के मुखवाली दो शाला (महिषी) हो वह 'शान्तिद' नाम का घर है । दक्षिण मुखवाली दो शाला ( गावी ) हो वह 'वर्द्धमान' घर है । पश्चिम मुखवाली दो शाला (छागी) हो यह 'कुक्कुट' घर है।
इसी प्रकार शान्तनादि चार द्विशाल वाले घरों के मध्य में पीड़ा (षड्दारु दो पीढ़े और चार स्तंभ) हो और द्वार के आगे एक २ अलिन्द हो तो स्वस्तिकादि चार प्रकार के घर बनते हैं। जैसे-शान्तन नामके द्विशाल घर के मध्य में पटदारु और मुख के आगे एक अलिन्द हो तो यह 'स्वस्तिक' नाम का घर कहा जाता है । शान्तिद नाम के द्विशाल घर के मध्य में षटदारु और मुख के आगे एक अलिन्द हो तो यह 'हंस' नाम का घर कहा जाता है । वर्द्धमान नाम के द्विशाल घर के मध्य में षटदारु और मुख के आगे एक अलिन्द हो तो यह 'वर्द्धन' नाम का घर कहा जाता है। कुक्कुट नाम के द्विशाल घर के मध्य में षटदारु और मुख के आगे एक अलिन्द हो तो यह 'कर्पूर' नाम का घर कहा जाता है ॥२॥
सत्थियगेहस्सग्गे अलिंदु बीयो अतं भवे संतं। संते गुजारिदाहिण थंभसहिय तं हवइ वित्तं ॥३॥
स्वस्तिक घर के आगे दूसरा एक अलिन्द हो तो यह 'शान्त' नाम का घर कहा जाता है । हंस घर के आगे दूसरा अलिन्द हो तो यह 'हर्षण' घर कहा जाता है । वर्द्धन घर के आगे दूसरा अलिन्द हो तो यह 'विपुल घर कहा जाता है । क—र घर के आगे दूसरा अलिन्द हो तो यह 'कराल' घर कहा जाता है ।
शान्त घर के दक्षिण तरफ स्तंभवाला एक अलिन्द हो तो यह 'वित्त'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org