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वास्तुसारे
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जंगम ६१, सिंहनाद ६२, हस्तिज ६३ और कंटक ६४ इत्यादि ६४ घरों के नाम कहे हैं। अब इनके लक्षण और भेदों को कहता हूं ॥ ७५ से ८१ ॥ द्विशाल घर के लक्षण राजवल्लभ में इस प्रकार कहा है
"अथ द्विशालालयलक्षणानि, पदैनिमिः कोष्टकरंध्रसंख्या ।
तन्मध्यकोष्टं परिहृत्य युग्मं, शालाश्चतस्रो हि भवन्ति दितु ॥"
दो शाला वाले घर इस प्रकार बनाये जाते हैं कि-द्विशाल घर वाली भूमि की लम्बाई और चौड़ाई के तीन २ भाग करने से नौ भाग होते हैं। इनमें से मध्य भाग को छोड़ कर बाकी के आठ भागों में से दो २ भागों में शाला बनानी चाहिये । और बाकी की भूमि खाली रखना चाहिये । इसी प्रकार चार दिशाओं में चार प्रकार की शाला होती है। याम्याग्निगा च करिणी धनदाभिवक्त्रा, पूर्वानना च महिषी पितृवारुणस्था । गावी यमाभिवदनापि च रोगसोमे, छागी महेन्द्रशिवयोर्वरुणाभिवक्त्रा ॥"
दक्षिण और अग्निकोण के दो भागों में दो शाला हों और इनके मुख उत्तर दिशा में हों तो उन शालाओं का नाम करिणी ( हस्तिनी) शाला है। नैऋत्य और पश्चिम दिशा के दो भागों में पूर्व मुखवाली दो शाला हों उन का नाम 'महिषी' शाला है। वायव्य और उत्तर दिशा के दो भागों में दक्षिण मुखवाली दो शाला हों उनका नाम 'गावी' शाला है। पूर्व और ईशानकोण के दो भागों में पश्चिम मुखवाली दो शाला हो उनका नाम 'छागी' शाला है।
करिणी (हस्तिनी) और महिषी ये दो शाला इकट्ठी हों ऐसे घर का नाम 'सिद्धार्थ' है, यह नाम सदृश शुभफलदायक है । गावी और महिषी ये दो शाला इकट्ठी हों ऐसे घर का नाम 'यमसूर्प' है, यह मृत्यु कारक है। छागी और गावी ये दो शाला इकट्ठी हो ऐसे घर का नाम 'दंड' है, यह धन की हानि करनेवाला है । हस्तिनी और छागी ये दो शाला इकट्ठी हों ऐसे घर का नाम 'काच' है, यह हानि कारक है। गावी और हस्तिनी ये दो शाला इकट्ठी हों ऐसे घर का नाम 'चुल्हि' है, यह घर अच्छा नहीं है । इस प्रकार
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