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पास्तुलारे पीछे नीचे की दूसरी पंक्ति में प्रथम गुरु के स्थान के नीचे एक लघु अक्षर लिखकर बाकी ऊपर के बगबर लिखना चाहिये, पीछे नीचे की तीसरी पंक्ति में ऊपर के लघु अक्षर के नीचे गुरु और गुरु अक्षर के नीचे एक लघु अक्षर लिखकर बाकी ऊपर के समान लिखना चाहिये । इसी प्रकार सब लघु अक्षर हो जाय वहां तक क्रिया करें। लघु गुरु जानने के लिये लघु अक्षर का (1) ऐसा और गुरु अक्षर का (5) ऐसा चिड करें । विशेष देखो नीचे की प्रस्तार स्थापना. ssss
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सुवादि सोलह घरों का प्रस्तार
तं धुव धन्नाईणं पुव्वाइ-लहुहिं सालनायव्वा । गुरुठाणि मुणह भित्ती नाम समं हवइ फलमेसि ॥७॥
जैसे चार गुरु अक्षरवाले छंद के सोलह भेद होते हैं, उसी प्रकार घर के प्रदक्षिण क्रम से लघुरूप शाला द्वारा ध्रुव धान्य आदि सोलह प्रकार के घर बनते हैं। लघु के स्थान में शाला और गुरु के स्थान में दीवार जानना चाहिये । जैसे प्रथम चारों ही गुरु अक्षर हैं तो इसी तरह घर के चारों ही दिशा में दीवार है अर्थात् घर की कोई दिशा में शाला नहीं है । प्रस्तार के दूसरे भेद में प्रथम लघु है, तो यहां दूसरा धान्य नाम के घर की पूर्व दिशा में शाला समझना चाहिये । तीसरे मेद में दूसरा लघु है, तो तीसरे जय नाम के घर के दक्षिण में शाला और चौथे भेद में प्रथम दो लघु है तो चौथा नंद नामक घर के पूर्व और दक्षिण में एक २ शाला है,
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