SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गृह प्रकरणम् (14) शाला, अलिन्द ( गति ), गुजारी, दीवार, पट्टे, स्तंभ, झरोखे और मंडप आदि के भेदों से अनेक प्रकार के घर बनते हैं ||६६ || चउदस गुरुपत्थारे लहुगुरुभे एहिं सालमाईणि । जायंति सव्वगेहा सोलसहस्स - तिसय-चुलसीश्रा ॥७०॥ जिस प्रकार लघु गुरु के भेदों से चौदह गुरु अक्षरों का प्रस्तार बनता है, उसी प्रकार शाला मलिंद आदि के भेदों से सोलह हजार तीन सौ चोरासी (१६३८४) प्रकार के घर बनते हैं ॥ ७० ॥ ततो य जिंकिवि संपइ वट्टेति धुवाइ संतगाईणि । ताणं चिय नामाई लक्खणचिन्हाई वुच्छामि ॥७१॥ इसलिये आधुनिक समय में जो कुछ भी धवादि और शांतनादि घर हैं, उनके नाम आदि को इकट्ठे करके उनके लक्षण और चिह्नों को मैं ( ठक्कुर 'फेरू' ) कहता हूं ॥ ७१ ॥ भुवादि घरों के नाम धुव- धन्न जया नंद- खर- कंत- मणोरमा सुमुह- दुमुहा । क्रूर- सुपक्ख धणद- खय- आक्कंद - विउल- विजया गिहा ॥७२॥ ध्रुव, धान्य, जय, नंद, खर, कान्त, मनोरम, सुमुख, दुर्मुख, क्रूर, सुपच, धनद, क्षय, आक्रंद, विपुल और विजय ये सोलह घरों के नाम हैं ॥ ७२ ॥ प्रस्तार विधि— Jain Education International चत्तारि गुरू ठविडं लहु यो गुरुहिट्ठि सेस उवरिसमा । ऊहिं गुरू एवं पुणो पुणो जाव सव्व लहू ॥७३॥ चार गुरु अक्षरों का प्रस्तार बनावे । प्रथम पंक्ति में चारों अक्षर गुरु लिखे । • 'कोई प्रन्थ में 'विपक्ष' नाम दिया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy