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परिभाषा -
श्रोवर 'नाम साला जेरोग दुसालु भगणए गेहं । गहनामं च अलिंदो इग द तिऽलिंदोह पटसालो ॥६५॥ पटसालवार दुहु दिसि जालियभित्तीहिं मंडवो हवइ । पिठ्ठी दाणिवा दिनामेहिं गुजारी ॥ ६६ ॥ जालियनामं मूसा थंभयनामं च हवइ खडदारं । भारपट्टो य तिरियो पीढ कडी धरण एगट्ठा ॥ ६७ ॥ योवरय पट्टसाला पज्जंतं मूलगेह नायव्वं । एस चैव गणियं रंधणगेद्दाइ गिहभूसा ॥ ६८ ॥
ओरडे ( कमरे ) का नाम शाला है। जिसमें एक दो शालायें हों उसको
बर कहते हैं। गइ नाम अलिंद ( गृहद्वार के आगे का दालान ) का है। जहां एक दो या तीन अलिंद हों उसको पटशाला कहते हैं ।। ६५ ।।
पटशाला के द्वार के दोनों तरफ खिड़की ( झरोखा ) युक्त दीवार और मंडप होता है । पिछले भाग में तथा दाहिनी और बायीं तरफ जो अलिन्द हो उसको गुजारी कहते हैं ॥ ६६ ॥
जालिय नाम भूषा ( छोटा दरवाजा ) का है । खंभे का नाम पद्दारु है। स्तंभ के उपर तीर्च्छा जो मोटा काष्ट रहता है उसको भारवट कहते है । पीठ की र धरण ये तीनों एक अर्थवाची नाम हैं ॥६७॥
बास्तुखारे
ओरडे से पटशाला तक मुख्य घर जानना चाहिये और बाकी जो रसोई घर आदि हैं वे सब मुख्य घर के आभूषण हैं ||६८||
घरों के भेदों का प्रकार
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श्रोवर-लिंद गई गुजारि-भित्तीण पट्ट थंभाण । जालियमंडवाणय भेएण गिहा उवज्जंति ॥ ६६॥
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