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गृह प्रकरणम्
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तारा जानने के लिये घर का नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी है और मालिक का नक्षत्र रेवती है। इसलिये उत्तराफाल्गुनी से रेवती तक गीनने से १६ संख्या होती है, इसको 8 से भाग दिया तो शेष ७ बचे, इसलिये सातवीं तारा हुई । प्रायादिक का अपवाद विश्वकर्मप्रकाश में कहा है कि
"एकादशयवादूर्व यावद् द्वात्रिंशहस्तकम् । तावदायादिकं चिन्त्यं तवं नैव चिन्तयत् ॥
आयव्ययौ मासशुद्धिं न जीणे चिन्तयेद् गृहे ।" जिस घर की लंबाई ग्यारह यव से अधिक बत्तीस हाथ तक हो तो उसमें आय व्यय आदि का विचार करना चाहिये । परन्तु बत्तीस हाथ से अधिक लंबाई वाला घर हो तो उसमें आय आदि का विचार नहीं करना चाहिये। तथा जीर्ण घर के उद्धार के समय भी आय व्यय और मास शुद्धि आदि का विचार नहीं करना चाहिये । मुहर्तमार्तण्ड में भी कहा है कि
"द्वात्रिंशाधिकहस्तमब्धिवदनं ताणं त्वलिन्दादिकं ।
नेष्वायादिकमीरितं तृणगृहं सर्वेषु मास्सूदितम् ॥" जो घर बत्तीस हाथ से अधिक बड़ा हो, चार द्वारवाला हो, घास का घर हो तथा अलिंद निव्यूह (मादल) इत्यादि ठिकाने आय आदि का विचार न करें । तृण का घर तो सब महीनों में बना सकते हैं । घर के साथ मालिक का शुभाशुभ लेन देन का बिचार
जह करणावरपीई गणिज्जए तह य सामियगिहाण । जोणि-गण-रासिपमुहा 'नाडीवेहो य गणियव्वो॥६४॥
जैसे ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कन्या और वर के आपस में प्रेम भाव का मिलान किया जाता है । उसी प्रकार घर और घर के स्वामी के लेन देन आदि का विचार, योनि गण राशि और नाडी वेध द्वारा अवश्य करना चाहिये ॥६४॥
तज्जाणह जोहसामो अ' इति पाठान्तरे । १ योनि गण राशि नाडीवेध इत्यादि का खुलासा प्रतिक्षा संबंधी मुहूर्त के परिशिह में देखो
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