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व्यय का ज्ञान -
वसुभत्तरिक्वसेसं वयं तिहा जक्ख- रक्खस- पिसाया । का कमसोही हियसमं मुणेयव्वं ॥ ६० ॥
व्यय का फल -
गृह प्रकरणम्
घर के नक्षत्र की संख्या को आठ से भाग देना, जो शेष बचे यह व्यय जानना । यह व्यय यक्ष राक्षस और पिशाच ये तीन प्रकार के हैं। आय की संख्या से व्यय की संख्या कम हो तो यक्ष व्यय, अधिक हो तो राक्षस व्यय और बराबर हो तो पिशाच व्यय समझना ॥ ६० ॥
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Grare विद्धिकरो धणनासं कुणइ रक्खसवओो aftheart पिसा तह य जमंसं च वज्जिज्जा ॥ ६१ ॥
यदि घर का यक्ष व्यय हो तो धन धान्यादि की वृद्धि करनेवाला है । राम व्यय हो तो धन धान्यादि का नाश करनेवाला है और पिशाच व्यय हो तो मध्यम है । तथा नीचे बतलाये हुए त्रण अंशों में से यमअंश को छोड़ देना चाहिये ॥ ६१॥ अंश का. ज्ञान -
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मूलरासिस्स कं. गिनामक्खरवयंकसंजुत्तं । तिविहुत सेस धंसा 'इंदंस - जमेस - रायंसा ॥ ६२ ॥
घर के तारे का ज्ञान -
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घर की मूलराशि (क्षेत्रफल ) की संख्या, ध्रुवादि घर के नामाक्षर अंक और व्यय संख्या इन तीनों को मिला कर तीन से भाग देना, जो शेष रहे यह श जानना । यदि एक शेष रहे तो इन्द्रांश, दो शेष रहे तो यमांश और शून्य शेष रहे तो राजांश जानना चाहिये ॥ ६२ ॥
गेहभसामिभपिंडं नवभचं सेस छ च नव सुहया । मज्झिम दुग इग अट्ठा ति पंच सतहमा तारा ॥ ६३ ॥
३ 'वं जमा वह परापायो' इषि परमम्बरे ।
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