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गृह प्रकरणम्
धय-गय-सीहं दिजा संते ठाणे धश्रो श्र सम्बत्थ । गय-पंचाणण-वसहा खेडय तह कव्वडाईसु ॥५४॥
ध्वज, गज और सिंह ये तीनों आय उत्तम स्थानों में, ध्वज प्राय सब जगह, गज सिंह और वृष ये तीनों आय गांव किला आदि स्थानों में देना चाहिये ॥५४॥
वावी-कूव-तडागे सयणे अगयो अग्रासणे सीहो । वसहो भोगणपत्ते छत्तालवे धयो सिहो ॥५५॥
बावड़ी, कूमा, तालाव, और शयन ( शय्या ) इन स्थानों में गज आय श्रेष्ठ है । सिंहासनादि आसन में सिंह आय श्रेष्ठ है। भोजन के पात्र में वृष श्राय और छत्र तोरण मादि में ध्वज आय श्रेष्ठ है।
विस-कुंजर-सीहाया नयरे पासाय-सब्बगेहेसु । साणं मिच्छाईसुं धंखं कारु अगिहाईसु ॥५६॥
वृष गज और सिंह ये तीनों आय नगर, प्रासाद (देवमंदिर या राजमहल) और सब प्रकार के घर इन स्थानों में देना चाहिये । श्वान श्रआय म्लेच्छ आदि के घरों में और ध्वांद आय अगृहादि ( तपस्वियों के स्थान उपाश्रय-मठ झोपड़ी आदि) में देना चाहिये ॥५६॥
धुमं रसोइठाणे तहेव गेहेसु वरािहजीवाणं । रासहु विसाणगिहे धय-गय-सीहाउ रायहरे ॥५७॥
भोजन पकाने के स्थान में तथा अग्नि से आजीविका करनेवाले के घरों में धूम्र प्राय देना चाहिये । वेश्या के घर में खर आय देना चाहिये । राजमहल में ध्वज गज और सिंह प्राय देना अच्छा है ॥५७।। पर के नक्षत्र का ज्ञान
दीहं वित्थरगुणियं जं जायइ मूलरासि तं नेयं । अट्ठगुणं उडुभत्तं गिहनक्खत्तं हवइ सेसं ॥५॥
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