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पास्तुलारे
माय पर से द्वार की समझ पीयूषधारा टोका में कहा है कि
"सर्वद्वार इह ध्वजो वरुणदिग्द्वारं च हित्वा हरिः ।
प्रारद्वारो वृषभो गजो यमसुरे-शाशामुख: स्याच्छुभः ॥" ध्वज आय आवे तो पूर्वादि चारों दिशा में द्वार रख सकते हैं । सिंह प्राय आवे तो पश्चिम दिशा को छोड़ कर पूर्व दक्षिण और उत्तर इन तीन दिशा में द्वार रक्खें । वृषभ आय आवे तो पूर्व दिशा में द्वार रक्खें और गज प्राय आवे तो पूर्व और दक्षिण दिशा में द्वार रखें।
एक आय के ठिकाने दूसरा कोई प्राय आ सकता है या नहीं ? इसका खुलासा आरंभसिद्धि में इस प्रकार किया है
"ध्वजः पदे तु सिंहस्य तौ गजस्य वृषस्य ते ।
एवं निवेशमर्हन्ति स्वतोऽन्यत्र वृषस्तु न ॥" समस्त आय के स्थानों में ध्वज श्राय दे सकते हैं। तथा सिंह प्राय के स्थान में ध्वज आय, गज आय के स्थान में ध्वज, और सिंह ये दोनों में से कोई आय और धूष माय के स्थान में ध्वज, सिंह और गज ये तीनों में से कोई माय आ सकता है । अर्थात् सिंह आय जिस स्थान में देने का है, उसी स्थान में सिंह प्राय के अभाव में ध्वज आय भी दे सकते हैं, इसी प्रकार एक के अभाव में दूसरे प्राय स्थापन कर सकते हैं । किन्तु वृष आय अपने स्थान से दूसरे आय के स्थान में नहीं देना चाहिये । अर्थात् वृष आय वृष आय के स्थान में ही देना चाहिये । कौन २ ठिकाने कौन २ आय देना यह बतलाते हैं---
विप्पे धयाउ दिज्जा खित्ते सीहाउ वइसि वसहायो । सुद्दे श्र कुंजरायो धंखाउ मुणीण नायव्वं ॥५३॥
ब्राह्मण के घर में ध्वज आय, क्षत्रिय के घर में सिंह आय, वैश्य के घर में वृषभ आय, शूद्र के घर में गज आय और मुनि (सन्यासी) के आश्रम में ध्वांत प्राय लेना चाहिये ॥५३॥
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