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गृह प्रकरणम्
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है। अर्थात् सूर्य बलवान् हो तो घर के स्वामी को और चन्द्रमा बलवान् हो तो स्त्री को फलदायक है। शुक्र बलवान् हो तो धन और गुरु बलवान् हो तो सुख देता है ॥३६॥ राजा आदि के पांच प्रकार के घरों का मान
राया सेणाहिवई अमच्च-जुवराय-अणुज-रगणीणं । नेमित्तिय-विज्जाण य पुरोहियाण इह पंचगिहा ॥४०॥ एगसयं अट्ठहियं चउसट्ठि सठ्ठि असी अ चालीसं । तीसं चालीसतिगं कमेण करसंखवित्थारा ॥४१॥ श्रड छह चउ छह चउ छह चउ चउ चउ हीणया कमेणेव । मूलगिहवित्थरात्रो सेसाण गिहाण वित्थारा ॥४२॥ चउ छच्च अट्ठ तिय तिय श्रह छ छ छ भागजुत्त वित्थरयो। सेस गिहाण य कमसो माणं दीहत्तणे नेयं ॥४३॥
राजा, सेनापति, मंत्री (प्रधान ), युवराज, अनुज (छोटा भाई-सामंत), राणी, नैमित्तिक ( ज्योतिषी), वैद्य और पुरोहित, इन प्रत्येक के उत्तम, मध्यम, विमध्यम, जघन्य और अतिजघन्य आदि भेदों से पांच पांच प्रकार के गृह बनते हैं। उनके उत्तम गृहों का विस्तार क्रमशः-१०८, ६४. ६०, ८०, ४०, ३०, ४०, ४०, और ४० हाथ प्रमाण है । और इन प्रत्येक में से ८, ६, ४, ६, ४, ६, ४, ४, और ४ हाथ क्रम से बार बार घटाया जाय तो मध्यम, विमध्यम, कनिष्ठ और अति कनिष्ठ घर का विस्तार बन जाता है । यह विस्तार सब मुख्य गृह का समझना चाहिये । तथा विस्तार का चौथा, छट्ठा, आठवां तीसरा, तीसरा, आठवां, छट्ठा, छट्ठा और छट्ठा भाग क्रम से विस्तार में जोड़ देवें, तो सब गृहों की लंबाई का प्रमाण हो जाता है ॥४० से ४३॥
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