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कारक है । मूल, आर्द्रा, आश्लेषा ज्येष्ठा इन नक्षत्रों में गृहारंभ या गृह प्रवेश करे तो पुत्र का विनाश करे ॥३५॥
पुवतिगं महभरणी गिहसामिवहं विसाहत्थीनास। कित्तिय अग्गि समत्ते गिहप्पवेसे अ ठिइ समए ॥३६॥
यदि घरका आरम तथा घर में प्रवेश तीनो पूर्वा ( पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा, पूर्वाभाद्रपदा ), मघा और भरणी इन नक्षत्रों में करे तो घर के स्वामी का विनाश हो । विशाखा नक्षत्र में करे तो स्त्री का विनाश हो और कृत्तिका नक्षत्र में करे तो अमि का भय हो ॥३६॥
तिहिरित वारकुजरवि चरलग्ग विरुद्धजोश्र दिणचंदं । वजिज गिहपवेसे सेसा तिहि-वार-लग्ग-सुहा ॥३७॥
रिक्ता तिथि, मंगल या रविवार, चर लम ( मेष कर्क तुला और मकर लम ), कंटकादि विरुद्ध योग, क्षिण चन्द्रमा या नीच का या क्रूरग्रह युक्त चन्द्रमा ये सब घर में प्रवेश करने में या प्रारंभ में छोड़ देना चाहिये । इनसे दूसरे पाकी के तिथि वार लग्न शुभ हैं ॥३७॥
किंदुदुडतकरा असुहा तिछगारहा सुहा भणिया । किंदुतिकोणतिलाहे सुहया सोमा समा सेसे ॥३८॥
यदि करग्रह केन्द्र ( १-४-७-१० ) स्थान में, तथा दूसरे आठवें या बारहवें स्थान में हो तो अशुभ फलदायक हैं। किन्तु तीसरे छठे या ग्यारहवें स्थान में हो तो शुभ फल दायक हैं। शुभग्रह केन्द्र (१-४-७-१०) स्थान में, त्रिकोण ( नवम-पंचम ) स्थान में, तीसरे या ग्यारहवें स्थान में हो तो शुभ कारक हैं, किन्तु बाकि के ( २-६-८-१२.) स्थान में हो तो समान फलदायक हैं ॥३८॥
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