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( २२ )
वास्तुसारे
इक्केवि गहे णिच्छइ परगेहि परंसि सत्त-बारसमे । गिहसामिवराणनाहे अबले परहत्थि होइ गिह ॥३२॥
यदि कोई भी एक ग्रह नीच स्थान का, शत्रु स्थान का या शत्रु के नवांशक का होकर सातवें स्थान में या बारहवें स्थान में रहा हो तथा गृहपति के वर्षका स्वामी निर्बल हो, ऐसे समय में प्रारंभ किया हुआ घर दूसरे शत्रु के हाथ में निश्चय से चला जाता है ॥३२॥ गृहपति के वर्णपति
बंभण-सुक्कबिहफा रविकुज-खत्तिय मयंअवहसो श्र। बुहु सुदु मिच्छसणितमु गिहसामियवराणनाह इमे ॥३३॥
प्रामण वर्ण के स्वामी शुक्र मौर बृहस्पति, क्षत्रिय वर्ण के स्वामी रवि और मंगल, वैश्य वर्ण का स्वामी चन्द्रमा, शूद्र वर्ण का स्वामी बुध तथा म्लेच्छ वर्य के स्वामी शनि और राहु हैं । ये गृहस्वामी के वर्ण के स्वामी हैं ॥३३॥ गृह प्रवेश विचार
सयलसुहजोयलग्गे नीमारंभे य गिहपवेसे श्र । जइ अट्ठमो अ कूरो अवस्स गिहसामि मारेइ ॥३४॥
खात के आरंभ के समय और नवीन गृह प्रवेश (घर में प्रवेश ) करते समय लम में समस्त शुभ योग होने पर भी भाठवें स्थान में यदि क्रूर ग्रह हो तो पर के स्वामी का अवश्य विनाश होता है ॥३४॥
चित्त-अणुराह-तिउत्तर रेवइ-मिय-रोहिणी श्र विद्धिकरो। मूल-दा-असलेसा-जिट्ठा-पुत्तं विणासेइ ॥३५॥
चित्रा, अणुराधा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती, मृगशिर और रोहिणी इन नक्षत्रों में घर का प्रारंभ या घर में प्रवेश करे वो पति
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