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गृह प्रकरणम्
(२५)
शुक्र लग्न में, बुध दशम स्थान में, सूर्य ग्यारहवें स्थान में और बृहस्पति केन्द्र (१-४-७-१० स्थान ) में हो, ऐसे लम में यदि नवीन घर का खात करे तो सौ वर्ष का प्रायु उस घर का होता है ॥२८॥ दसमचउत्थे गुरुससि सणिकुजलाहे अलच्छि वरिस असी। इगति चउ छ मुणि कमसो गुरुसणिभिगुरविबुहम्मि सयं ॥२१॥
दसवें और चौथे स्थान में बृहस्पति और चन्द्रमा हो, तथा ग्यारहवें स्थान में शनि और मंगल हो, ऐसे लग्न में गृह का आरंभ करे तो उस घर में लक्ष्मी अस्सी (८०) वर्ष स्थिर रहे । बृहस्पति लग्न में (प्रथम स्थान में ), शनि तीसरे, शुक्र चौथे, रवि छठे और बुध सातवें स्थान में हो, ऐसे लग्न में आरंभ किये हुए घर में सौ वर्ष लक्ष्मी स्थिर रहे ॥ २६ ॥
सुक्कुदए रवितइए मंगलि छढे अ पंचमे जीवे । इत्र लग्गकए गेहे दो वरिससयाउयं रिद्धी ॥३०॥
शुक्र लग्न में, सूर्य तीसरे, मंगल छठे और गुरु पांचवें स्थान में हो, ऐसे लम में घर का आरंभ किया जाय तो दो सौ वर्ष तक यह घर समृद्धियों से पूर्ण रहे ॥३०॥
सगिहत्थो ससि लग्गे गुरुकिदे बलजुयो सुविद्धिकरो। कूरट्टम-अहसुहा सोमा मज्झिम गिहारंभे ॥३१॥
स्वगृही चंद्रमा लग्न में हो अर्थात् कर्क राशि का चंद्रमा लममें हो और बृहस्पति केन्द्र ( १-४-७-१० स्थान ) में बलवान होकर रहा हो, ऐसे लम के समय घरका आरंभ करे तो उस घर की प्रतिदिन वृद्धि हुआ करे। गृहारंभ के समय लम से आठवें स्थान में क्रूर ग्रह हो तो बहुत अशुभ कारक है और सौम्यग्रह हो तो मम्मम है ॥ ३१ ॥
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