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वास्तुसारे
रोहिणी, अश्विनी, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा और हस्त इन नक्षत्रों पर बुध हो तब, या ये नक्षत्र और बुधवार के दिन घर का प्रारम्भ करे तो सुख कारक और पुत्रदायक होता है।
"अजैकपादाहिर्बुध्न्य-शक्रमित्रानिलान्तकैः ।
समन्दैमन्दवारे स्याद् रक्षोभूतयुतं गृहम् ॥" पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, ज्येष्ठा, अनुराधा, स्वाती और भरणी इन नक्षत्रों पर शनि हो तब, या ये नक्षत्र और शनिवार के दिन घर का प्रारंभ करे तो यह घर राक्षस और भूत आदि के निवास वाला हो ।
'अग्निनक्षत्रगे सूर्ये चन्द्रे वा संस्थिते यदि ।
निर्मितं मंदिरं नूनं-मग्निना दह्यतेऽचिरात् ॥" कृत्तिका नक्षत्र के ऊपर सूर्य या चन्द्रमा हो तब घर का आरंभ करे तो शीघ्र ही वह घर अग्नि से भस्म हो जाय । प्रथम शिला की स्थापना
पुव्वुत्तर-नीमतले घिय-अक्खय-रयणपंचगं ठविउं । सिलानिवेसं कीरइ सिप्पीण सम्माणणापुव्वं ॥२७॥
पूर्व और उत्तर के मध्य ईशान कोण में नीम ( खात ) में प्रथम घी अक्षत (चावल) और पांच जाति के रत्न रख करके ( वास्तु पूजन करके ), तथा शिल्पियों का सन्मान करके, शिला की स्थापना करनी चाहिये ॥२७।।
अन्य शिल्प ग्रंथों में प्रथम शिला की स्थापना अग्नि कोण में या ईशान कोण में करने को भी कहा है। खात लम विचार:----
भिगु लग्गे बुहु दसमे दिणयरु लाहे बिहप्फई किंदे । जइ गिहनीमारंभे ता वरिससयाउयं हवइ ॥२८॥
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