________________
वास्तुसारे
-
-
रहारम्मे नक्षत्र फल
सुहलग्गे चंदबले खणिज्ज नीमीउ होमुहे रिक्खे । उड्ढमुहे नक्खत्ते चिणिज्ज सुहलग्गि चंदबले ॥२५॥
शुम लग्न और चंद्रमा का बल देख कर अधोमुख नक्षत्रों में खात मुहूर्त करना तथा शुभ लग्न और चंद्रमा बलवान देखकर ऊध्वे संज्ञक नक्षत्रों में शिक्षा का रोपण करना चाहिये ॥२५॥ पीयूषधारा टीका में माण्डव्य ऋषि ने कहा है कि
"अधोमुखैर्विदधीत खातं, शिलास्तथा चोर्ध्वमुखैश्च पट्टम् । तिर्यरमुखैरिकपाटयानं, गृहप्रवेशो मृदुभिर्धवः ॥"
अधोमुख नक्षत्रों में खात करना, ऊर्ध्वमुख नक्षत्रों में शिक्षा तथा पाटड़ा का स्थापन करना, तिर्यमुख नक्षत्रों में द्वार, कपाट, सवारी ( वाहन ) बनवाना तया मृदुसंज्ञक ( मृगशिर, रेवती, चित्रा और अनुराधा ) तथा धवसंज्ञक ( उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा और रोहिणी ) नक्षत्रों में घर में प्रवेश करना । अपनों की अधोमुखादि संज्ञा
सवण-इ-पुस्सु-रोहिणि तिउत्तरा-सय-धणि उड्ढमुहा । - भरणिऽसलेस-तिपुब्वा मू-म-वि-कित्ती अहोवयणा ॥२६॥
श्रवण, मार्दा, पुष्य, रोहिणी, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, शमिता और धनिष्ठा ये नक्षत्र ऊर्ध्वमुख संज्ञक हैं । भरणी, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी पूर्वापाडा, पूर्वाभाद्रपदा, मूल, मघा, विशाखा और कृतिका ये नक्षत्र अधोमुख संबक ॥ २६ ॥ मारंमसिदि ग्रंथ के अनुसार नक्षत्रों की अधोमुखादि संज्ञा
"अधोमुखानि पूर्वाः स्युर्मूलाश्लेषामघास्तथा । मरणीकृत्तिकाराधाः सिद्धयै खातादिकर्मणाम् ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org