________________
বু সঙ্কম
(१५)
नक्षत्र
लामो गमैःपुच्छगैःस्वामिनाशो, वेद::स्व्यं वामकुक्षौ मुखस्यैः । रामैःगडा संततं चाकधिष्ण्या-दश्वैरुद्रर्दिग्भिरुक्तं ह्यसत्सत् ॥ २॥"
गृह और प्रासाद आदि के आरम्भ में वृषवास्तु चक्र देखना चाहिये । जिस नक्षत्र पर सूर्य हो उस नक्षत्र से चन्द्रमा के नक्षत्र तक गिनती करना। प्रथम तीन नक्षत्र वृषभ के शिर पर समझना, इन नक्षत्रों में गृहादिक का आरम्भ करे तो अग्नि का उपद्रव हो। इनके आगे चार नक्षत्र वृषभ के अगले पॉव पर, इन में प्रारम्भ करे तो मनुष्यों का वास न रहे, शून्य रहे । वृष वास्तु चक्रइनके आगे चार नक्षत्र पिछले पाँव पर, इनमें
आग्भ करे तो गृह स्वामी का स्थिर वास रहे । स्थान इनके आगे तीन नक्षत्र पीठ भाग पर, इनमें मस्तके
अग्निदाह प्रारंभ करे तो लक्ष्मी की प्राप्ति हो। इनके
अ. पादे
शून्यता आगे चार नक्षत्र दक्षिण कोख (पेट) पर, इनमें आरम्भ करे तो अनेक प्रकार का लाभ और पृ. पादे
स्थिरता शुभ हो । इनके आगे तीन नक्षत्र पूंछ पर,
लक्ष्मी प्राप्ति इनमें प्रारम्भ करे तो स्वामी का विनाश हो,
द. कुक्षौ ४ लाभ इनके आगे चार नक्षत्र बांयी कोख (पेट ) पर, इनमें आरम्भ करे तो गृह स्वामी को दरिद्र
| पुच्छे । ३ स्वामिनाश बनावे । इनके आगे तीन नक्षत्र मुख पर, इनमें | वा. कुक्षौ | ४ | निर्धनता प्रारम्भ करे तो निरन्तर कष्ट रहे । सामान्य रूप से कहा है कि सूर्य नक्षत्र से चन्द्रमा के नक्षत्र ।
मुखे । ३ पीड़ा तक गिनना, इनमें प्रथम सात नक्षत्र अशुभ हैं, इनके आगे ग्यारह अर्थात् आठ से अठारह तक शुभ हैं और इनके आगे दश अर्थात् उन्नीस से अट्ठाइस तक के नक्षत्र अशुभ हैं । गृहारंभे राशिफल
धनमीणमिहुणकराणा संकंतीए न कीरए गेहं । तुलविच्छियमेसविसे पुवावर सेस-सेस दिसे ॥२२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org