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गृह प्रकरणम्
नाग की आकृति मालूम पड़े अर्थात् जहाँ २ शनि मंगलवार के कोठे हों वहां खात आदि न करे। नाग के मुख को जानने के लिये मुहूर्त्तचिन्तामणि में इस प्रकार कहा है कि
"देवालये गेहविधौ जलाशये, राहोर्मुखं शंभुदिशो विलोमतः । मीनार्कसिंहामृगार्कतस्त्रिमे, खाते मुखात् पृष्ठविदिक् शुभा भवेत् ॥"
देवालय के प्रारम्भ में राहु ( नाग ) का मुख, मीन मेष और वृषभ राशि के सूर्य में ईशान कोण में, मिथुन कर्क और सिंह राशि के सूर्य में वायव्य कोण में, कन्या तुला और वृश्चिक राशि के सूर्य में नैर्ऋत्य कोण में, धन मकर और कुंभ राशि के सूर्य में आग्नेय दिशा में रहता है ।
___ घर के प्रारम्भ में राहु ( नाग ) का मुख, सिंह कन्या और तुला राशि के सूर्य में ईशान कोण में, वृश्चिक धन और मकर राशि के सूर्य में वायव्य कोण में, ऊंभ मीन और मेष के सूर्य में नैर्ऋत्य कोण में, वृष मिथुन और कर्क राशि के सूर्य में अग्नि कोण में रहता है।
कुआं वावड़ी तलाब आदि जलाशय के आरम्भ में राहु का मुख, मकर कुम्भ और मीन के सूर्य में ईशान कोण में, मेष वृष और मिथुन के सूर्य में वायव्य कोण में, कर्क सिंह और कन्या के सूर्य में नैऋत्य कोण में, तुला वृश्चिक और धन के सूर्य में अग्नि कोण में रहता है।
मुख के पिछले भाग में खात करना । मुख ईशान कोण में हो तब उसका पिछला कोण अनि कोण में प्रथम खात करना चाहिये । यदि मुख वायव्य कोण में हो तो खात ईशान कोण में, नैऋत्य कोण में मुख हो तो खात वायव्य कोण में और मुख अग्नि कोण में हो तो खात नैऋत्य कोण में करना चाहिये। हीरकलश मुनि ने कहा है कि
"वसहाइ गिणिय वेई चेइअमिणाई गेहसिंहाई ।
जलमयर दुग्गि कन्ना कम्मेण ईसानकुणलियं ॥ विवाह आदि में जो वेदी बनाई जाती है उसके प्रारम्भ में वृषभ आदि,
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