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( १२)
वास्तुसारे
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यदि प्रथम खात मस्तक पर करे तो माता पिता का विनाश, मध्य भाग नाभि के स्थान पर करे तो राजा आदि का भय और अनेक प्रकार के रोग आदि की पीड़ा हो । पूंछ के स्थान पर खात करे तो स्त्री, सौभाग्य और वंश (पुत्रादि ) की हानि हो और खाली स्थान पर करे तो स्त्री पुत्र रत्न अन्न और द्रव्य की प्राप्ति हो ।
यह शेष नाग चक्र बनाने की रीति इस प्रकार है-मकान आदि बनाने की भूमि के ऊपर बराबर समचौरस आठ आठ कोठे प्रत्येक दिशा में बनावे अर्थात् क्षेत्र
शेवनाचक
सो
मा
म
श
र
सो
दक्षण
उत्तर
र
सो
|स
चायच्य
पश्चिम
फल ६४ कोठे बनावे । पीछे प्रत्येक कोठे में रविवार आदि वार लिखे। और अंतिम कोठे में आद्य कोठे का वार लिखे । पीछे इनमें इस प्रकार नाग की आकृति बनावे कि शनिवार और मंगलवार के प्रत्येक कोठे में स्पर्श करती हुई मालूम पड़े, जहां २
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