SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वास्तुसारे नैर्ऋत्यकोण के स्वामी, 'धूम्र के वर्णवाले, व्याघ्रचर्म को पहिरनेवाले, हाथ में 'मुद्गर को धारण करनेवाले और प्रेत (शच) की सवारी करनेवाले ऐसे निऋति देव को नमस्कार । ___५ वरुणदेव का स्वरूप ॐ नमो वरुणाय पश्चिम दिगधीश्वराय मेघवर्णाय पीताम्बराय पाशहस्ताय मत्स्यवाहनाय च । पश्चिम दिशा के स्वामी, मेघ के जैसे वर्णवाले, पीले वस्त्रवाले हाथ में पाश ( फांसी) को धारण करनेवाले और मछली की सवारी करनेवाले ऐसे वरुणदेव को नमस्कार । ६ "वायुदेव का स्वरूप नमो वायवे वायव्यदिगधीशाय धूसराङ्गाय रक्ताम्बराय हरिणवाहनाय ध्वजप्रहरणाय च । वायुकोण के स्वामी, धूसर (हलका पीला रंग ) वर्णवाले, लाल वस्त्रवाले, हरिण की सवारी करने वाले और हाथ में ध्वजा को धारण करनेवाले ऐसे वायुदेव को नमस्कार । ७ “कुबेरदेव का स्वरूप ॐ नमो धनदाय उत्तरदिगधीशाय शक्रकोशाध्यक्षाय कनकाङ्गाय श्वेतवस्त्राय नरवाहनाय रत्नहस्ताय च । उत्तर दिशा के स्वामी, इंद्र के खजानची, सुवर्ण वर्णवाले, सफेद वस्त्रवाले, मनुष्य की सवारी करनेवाले और हाथ में रत्न को धारण करनेवाले ऐसे धनद (कुबेर) देव को नमस्कार । निर्वाणकलिका में इस प्रकार मतान्तर है १ हरित् । हग ) वर्णवाले और २ खड्ग को धारण करनेवाले माना है । ३ वरुण देव सफेद वर्णवाले और मगर की सवारी करनेवाले माना है। ४ वायुदेव भी सफेद वर्ण का माना है। ५ कुबेरदेव नवनिधि पर बैठे हुए, अनेक वर्णवाले, बड़े पेटवाले, हाथ में निचुलक ( जल में होनेवाला बेत )और गदा को धारण करनेवाले माना है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy