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________________ दश दिक्पालों का स्वरूप। १ इंद्र का स्वरूप ॐ नमः इन्द्राय तप्तकाश्चनवर्णय पीताम्बराय ऐरावणवाहनाय वज्रहस्ताय पूर्वदिगधीशाय च। तपे हुए सुवर्ण के वर्ण जैसे. पीले वस्त्रवाले, ऐरावण हाथी की सवारी करनेवाले और हाथ में वज्र को धारण करनेवाले और पूर्व दिशा के स्वामी ऐसे इंद्र को नमस्कार । २ अग्निदेव का स्वरूप ॐ नमः अग्नये भाग्नेय दिगधीश्वराय कपिलवर्णाय छागवाहनाय नीलाम्बराय धनुर्षाणहस्ताय च । अग्नि दिशा के स्वामी, कपिला के वर्ण जैसे ( अग्नि वर्णवाले ), बकरे की सवारी करने वाले, नील वर्ण के वस्त्रवाले, 'हाथ में धनुष और बाण को धारण करनेवाले ऐसे अग्निदेव को नमस्कार । ३ यमदेव का स्वरूप ॐ नमो यमाय दक्षिणदिगधीशाय कृष्णवर्णाय चर्मावरणाय महिषवाहनाय दण्डहस्ताय च । दक्षिण दिशा के स्वामी, कृष्ण वर्णवाले, चर्म के वस्त्रवाले, भैंसे की सवारी करनेवाले और हाथ में दंड को धारण करनेवाले यमराज को नमस्कार । ४ निर्ऋतिदेव का स्वरूप ॐ नमो निर्ऋतये नैऋत्यदिगधीशाय धूम्रवर्णाय व्याघ्रचर्मवृताय मुद्गरहस्ताय प्रेतवाहनाय च । निर्वाणकनिका में-शक्रि को धारण करना माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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