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वास्तुसारे सोलहवीं महामानसीदेवी का स्वरूप
महामानसीं देवीं धवलवर्णा सिंहवाहनां चतुर्भुजां वरदासियुक्तदक्षिणकरां कुण्डिकाफलकयुतवामहस्तां चेति ॥ १६ ॥
'महामानसी' नामकी सोलहवीं विद्यादेवी सफेद वर्णवाली, सिंह की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी भुजाओं में वरदान और तलवार तथा बाँयीं भुजाओं में कुंडिका और ढाल को धारण करनेवाली माना है ॥ १६ ॥
___ आचारदिनकर में तलवार और वरदानयुक्त दो हाथ तथा मगर की सवारी माना है।
जय विजयादि चार महा प्रतिहारी देवी का स्वरूप । "हारेषु पूर्वविधिनैव सुवर्णवप्रे,
पाशांकुशाऽभयमुद्गरपाणयोऽमूः । देव्यो जयापि विजयाप्यजिताऽपराजिताख्ये च चक्रुरखिलं प्रतिहारकर्म ॥ १॥"
पद्मानंतमहाकाव्ये सर्ग १४ श्लो• ४६ समवसरण के सुवर्णगढ़ के पूर्वादि द्वारों में पाश. अंकुश, अभय और मुद्गर को धारण करनेवाली जया, विजया, अजिता और अपराजिता नामकी चार देवी द्वारपाल का कार्य करती हैं।
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