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सोलह विद्यादेवी का स्वरूप
(१६७) ___ 'वैरोठ्या' नामकी तेरहवीं विद्यादेवी कृष्ण वर्णवाली, अजगर की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी भुजाओं में तलवार और साँप तथा बॉयीं भुजाओं में ढाल और साँप को धारण करनेवाली माना है ॥ १३ ॥
आचारदिनकर में गौरवर्णवाली, सिंह की सवारी करनेवाली, दाहिना एक हाथ तलवारयुक्त और दूसरा हाथ ऊंचा, बाँयां एक हाथ साँपयुक्त और दूसरा वरदानयुक्त माना है। चौदहवीं अच्छुप्तादेवी का स्वरूप
अच्छुप्ता तडिवर्णां तुरगवाहनां चतुर्भुजां खड्गवाणयुतदक्षिणकरां खेटकाहि युतवामकरां चेति ॥ १४ ॥
'अच्छुप्ता' नामकी चौदहवीं विद्यादेवी बीजली के जैसी कान्तिवाली, घोड़े की सवारी करनेवाली, चार भुनावाली, दाहिनी भुजाओं में तलवार और बाण तथा बाँयीं भुजाओं में ढाल और साँप को धारण करनेवाली है ॥ १४ ॥
प्राचारदिनकर और शोभनमुनिकृत चतुर्विंशति जिनस्तुति में साँप के स्थान पर धनुष धारण करने का माना है । पंद्रहवीं मानसीदेवी का स्वरूप
मानसी धवलवर्णा हंसवाहनां चतुर्भुजां वरदवज्रालंकृतदक्षिणकरां अक्षवलयाशनियुक्तवामकरां चेति ॥ १५॥
'मानसी' नामकी पंद्रहवीं विद्यादेवी सफेद वर्णवाली, हंस की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी भुजा वरदान और वज्र तथा बाँयीं भुजा माला और वज्र से अलंकृत है ॥ १५ ॥ ____आचारदिनकर में सुवर्ण वर्णवाली तथा वज्र और वरदानयुक्त हाथवाली माना है।
१ यह पाठ अशुद्ध मालूम होता है, यहां धनुष का पाठ होना चाहिये, क्योंकि बाण के साथ धनुष का संबंध रहता है।
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