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________________ दश दिक्पालों का स्वरूप ( १७१ ) ८ 'ईशानदेव का स्वरूप ॐ नमः ईशानाय ईशान दिगधीशाय श्वेतवर्णाय गजाजिनवृताय वृषभवाहनाय पिनाकशूलधराय च । ईशान दिशा के स्वामी, सफेद वर्णवाले, गजचर्म को धारण करनेवाले. बैल की सवारीवाले, हाथ में शिवधनु और त्रिशून को धारण करनेवाले ऐसे ईशानदेव को नमस्कार । ९ नागदेव का स्वरूप- ॐ नमो नागाय पातालाघोश्वराय कृष्णवर्णाय पद्मवाहनाय उरगहस्ताय च । पाताललोक के स्वामी, कृष्ण वर्णवाले, कमल के वाहनवाले और हाथ में सर्प को धारण करनेवाले ऐसे नागदेव को नमस्कार । १. ब्रह्मदेव का स्वरूप ॐ नमो ब्रह्मणे ऊर्ध्वलोकाधीश्वराय काञ्चनवर्णाय चतुर्मुखाय श्वेतवस्त्राय हंसवाहनाय कमलसंस्थाय पुस्तककमल हस्ताय च । ऊर्धलोक के स्वामी, सुवर्ण वर्णवाले, चार मुख गले, सफेद वस्त्रवाले, हंस की सवारी करने वाले, कमल पर रहनेवाले हाथ में पुस्तक पौर कमल को धारण करनेवाले ऐसे ब्रह्मदेव को नमस्कार । निर्वाण कलिका के मत से इस प्रकार मतान्तर है १ईशानदेव को तीन नेत्रवाला माना है। २ ब्रह्मदेव सफेद वर्णवाले और हाथ में कमंडलु धारण करनेवाले माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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