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गृह प्रकरणम्
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अहिमंतिऊण खडियं विहिपुव्वं कन्नाया करे दानो ।
आणाविजइ पगहं परहा इम अक्खरे सल्लं ॥ १२॥
जिस भूमि पर मकान आदि बनवाना हो, उसी भूमि में समान नव भाग करें। इन नव मागों में पूर्वादि आठ दिशा और एक मध्य में 'ब क च त ए ह स प और ( जय ) ऐसे नव अचर क्रम से लिखें ॥ ११ ॥
शल्य शोधन यंत्र पीछे 'ॐहीं श्रींएँ नमो वाग्वादिनि मम प्रश्ने अवतर २' __ इसी मंत्र से खड़ी (सफेद मट्टी) मंत्र करके कन्या के | ईशान | पूर्व | अग्नि | हाथ में देकर कोई प्रश्नाक्षर लिखवाना या बोलवाना। जो ऊपर कहे हुए नव अक्षरों में से कोई एक अक्षर लिखे | उत्तर मध्य | दक्षिण या बोले तो उसी अक्षर वाले भाग में शल्य है ऐसा समझना । यदि उपरोक्त नव अक्षरों में से कोई अक्षर प्रश्न | वायव्य | पश्चिम | नैर्ऋत्य | में न आवे तो शल्य रहित भूमि जानना ॥ १२॥
बप्पराहे नरसल्लं सड्ढकरे मिच्चुकारगं पुवे । कप्पराहे खरसल्लं अग्गीए दुकरि निवदंडं ॥१३॥
यदि प्रश्नाक्षर 'ब' आवे तो पूर्व दिशा में घर की भूमि में डेढ़ हाथ नीचे नर शल्य अर्थात् मनुष्य के हाड़ आदि है, यह घर धणी को मरण कारक है। प्रश्नाचर में 'क' आवे तो अग्नि कोण में भूमि के भीतर दो हाथ नीचे गधे की हड्डी आदि हैं, यह घर की भूमि में रह जाय तो राज दंड होता है अर्थात् राजा से भय रहे ॥१३॥
जामे चप्पराहेणं नरसल्लं कडितलम्मि मिच्चुकरं । तप्पण्हे निरईए सड्ढकरे साणुसल्लु सिसुहाणी ॥१४॥
जो प्रश्नाक्षर में 'च' आवे तो दक्षिण दिशा में गृह भूमि में कटी बराबर नीचे मनुष्य का शन्य है, यह गृहस्वामी को मृत्यु कारक है। प्रश्नावर में 'त' भावे
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