________________
वास्तुसारे
तो नैऋत्य कोण में भूमि में डेढ़ हाथ नीचे कुत्ते का शल्य है यह बालक को हानि कारक है अर्थात् गृहस्वामी को सन्तान का सुख न रहे ॥ १४ ॥
पच्छिमदिसि एपराहे सिसुसलं करदुगम्मि परएसं । वायवि हपरिह चउकरि अंगारा मित्तनासयरा ॥१५॥
प्रश्नाक्षर में यदि 'ए' आवे तो पश्चिम दिशा में भूमि में दो हाथ के नीचे बालक का शल्य जानना, इसी से गृहस्वामी परदेश रहे अर्थात् इसी घर में निवास नहीं कर सकता। प्रश्नाक्षर में 'ह' आवे तो वायव्य कोण में भूमि में चार हाथ नीचे अङ्गारे ( कोयले ) हैं, यह मित्र ( सम्बन्धी ) मनुष्य को नाश कारक है ॥ १६ ॥
उत्तरदिसि सप्पराहे दियवरसल्लं कडिम्मि रोरकरं । पप्पगहे गोसल्लं सड्ढकरे धणविणासमीसाणे ॥ १६ ॥
प्रश्नाक्षर में यदि 'स' आवे तो उत्तर दिशा में भूमि के भीतर कमर बराबर नीचे ब्राह्मण का शल्य जानना, यह रह जाय तो गृहस्वामी को दरिद्र करता है । यदि प्रश्नाक्षर में 'प' आवे तो ईशान कोण में डेढ़ हाथ नीचे गौ का शल्य जानना, यह गृहपति के धन का नाश कारक है ॥ १६ ॥
जप्पण्हे मज्झगिहे अइच्छार-कवाल-केस बहुसल्ला । वच्छच्छलप्पमाणा पाएण य हुँति मिच्चुकरा ॥१७॥
प्रश्नाक्षर में यदि 'ज' आवे तो भूमि के मध्य भाग में छाती बराबर नीचे अतिक्षार, कपाल, केश आदि बहुत शल्य जानना ये घर के मालिक को मृत्युकारक
इअ एवमाइ अनिवि जे पुवगयाइं हुंति सल्लाई । ते सव्वेवि य सोहिवि वच्छबले कीरए गेहं ॥ १८॥ .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org