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वास्तुलारे उनके तीर्थ में 'पार्श्व' नामका यक्ष हाथी के मुखवाला, शिर पर साँप की फणीवाला, कृष्ण वर्णवाला, कछुए की सवारी करनेवाला, चार भुनावाला, दाहिनी भुजाओं में बीजोरा और साँप बाँयीं भुजाओं में न्यौला और साँप को धारण करनेवाला है।
उन्हीं के तीर्थ में 'पद्मावती' नामकी देवी सुवर्ण वर्णवाली, 'मुर्गे की सवारी करनेवाली, चार भुनावाली, दाहिनी भुजाओं में कमल और पाश; बाँयीं भुजाओं में फल और अंकुश को धारण करनेवाली है ॥ २३ ॥ . चौवीसवें महावीरजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप
तथा चतुर्विशतितमं वर्धमानस्वामिनं कनकप्रभ सिंहलाञ्छनं उत्तराफाल्गुन्यां जातं कन्याराशिं चेति । तत्तीर्थोत्पन्नं मातङ्गयक्ष श्यामवर्ण गजवाहनं विभुजं दक्षिणे नकुलं वामे बीजपूरकमिति । तत्तीर्थोत्पन्नां सिद्धायिका हरितवर्णा सिंहवाहनां चतुर्भुजां पुस्तकाभययुक्तदक्षिणकरां मातुलिङ्गवीणान्वितवामहस्तां चेति ॥ २४ ॥
वर्द्धमान स्वामी ( महावीर स्वामी) नामके चौवीसवें तीर्थकर हैं, ये सुवर्ण वर्णवाले, सिंह के लांछनवाले, जन्म नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी और कन्या राशिवाले हैं।
उनके तीर्थ में 'मातंग' नामका यक्ष कृष्ण वर्णवाला, हाथी की सवारी करनेवाला, दो भुजावाला, दाहिने हाथ में न्यौला और बायीं हाथ में बीजोरा को धारण करनेवाला है।
उन्हीं के तीर्थ में 'सिद्धायिका' नामकी देवी हरे वर्णवाली, 'सिंह की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी भुजाओं में पुस्तक और अभय, 'बायीं भुजाओं में बीजोरा और बीणा को धारण करनेवाली है ॥ २४ ॥
१ प्राचारदिनकर में 'गदा' लिखा है ।
२ प्रवचनसारोद्धार त्रिषष्टीशलाका पुरुषचरित्र और प्राचारदिनकर में-'कुर्कुटोणवाहनां' अर्थात कर्कट जाति के 'सांप' की सवारी लिखा है।
३ च० वि० जि० चरित्र में हाथी का वाहन लिखा है। १ श्राचारदिनकर में बायें हाथों में पाश और कमल धारण करना लिखा है।
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