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अष्टमांश भूमि स्थापना -
सम चौरस भूमि की प्रत्येक
दिशा में बारह २ भाग करना, इनमें से पांच भाग मध्य में और साढे तीन २ भाग कोने में रखने से शुद्ध अष्टमांश होता है ॥ ८ ॥
इस प्रकार का अष्टमांश मंदिरों के और राजमहलों के मंडपों में विशेष करके किया जाता है ।
गृह प्रकरणम्
aria for fr दिसे बारस भागाउ भाग पण मज्झे । कुहिं सड़ढ़ तियतिय इय जायइ सुद्ध हंसं ॥ ८ ॥
अष्टमांश भूमि साधन यंत्र
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अष्टमांश स्थापना
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भूमि लक्षण फल
दितिग बीयपसवा चउरंसाऽवम्मिणी' फुट्टा य । अक्कलर भू सुहया पुव्वेसागुत्तरंबुवहा ॥ १॥ म्हणी वाहिकरी ऊसर भूमीह हवड़ रोरकरी | इफुट्टा मिच्चुकरी दुक्खकरी तह य ससल्ला ॥ १० ॥ जो भूमि बोये हुए बीजों को तीन दिन में उगाने वाली, सम चौरस, दीमक रहित, बिना फटी हुई, शल्य रहित और जिसमें पानी का प्रवाह पूर्व ईशान या उत्तर तरफ जाता हो अर्थात् पूर्व ईशान या उत्तर तरफ नीची हो ऐसी भूमि सुख देने वाली
१ या । २ असल्ला ।
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