________________
वास्तुलारे
-
बराबर व्यासार्द्ध मान कर एक 'क' बिन्दु से ' च छ ज' और दूसरा 'च' बिन्दु से 'क ख ग गोल किया जाय तो मध्य में मच्छली के आकार का गोल बन जाता है । अब मध्य बिन्दु 'अ' से ऐसी एक लम्बी सरल रेखा खींची जाय, जो मच्छली के आकार वाले गोल के मध्य में होकर दोनों गोल के स्पर्श बिन्दु से बाहर निकले, यही उत्तर दक्षिण रेखा समझना ।
मानलो कि शंकु की छाया तिरछी 'इ' बिन्दु के पास गोल में प्रवेश करती है, तो 'इ' पश्चिम बिन्दु और 'उ' बिन्दु के पास बाहर निकलती है, तो 'उ' पूर्व बिन्दु समझना। पीछे 'इ' विन्दु से 'उ' बिन्दु तक सरल रेखा खींची जाय तो यह पूर्वा पर रेखा होती है। पीछे पूर्ववत् 'अ' मध्य बिन्दु से उत्तर दक्षिण रेखा खींचना। चौरस भूमि साधन
समभूमीति हीए वनॊति पट्टकोण कक्कडए । कूण दुदिसित्तरंगुल मज्झि तिरिय हत्थुचउरंसे ॥७॥ चौरस भूमि साधन यत्र
एक हाथ प्रमाण समतल भूमि पर आठ कोनों वाला त्रिज्या युक्त ऐसा एक गोल बनाओ कि कोने के दोनों तरफ सत्रह २ अंगुल के भुजा वाला एक तिरछा समचोरस हो जाय ॥ ७॥ __यदि एक हाथ के विस्तार वाले गोल में अष्टमांश बनाया जाय तो प्रत्येक भुजा का माप नव अंगुल होगा और चतुर्भुज बनाया जाय तो प्रत्येक भुजा
का माप सत्रह अंगुल होगा। १खसर' इति पाठः।
व्यम्सनाथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org