________________
जिनेश्वर देव और उनके शासन देवों का स्वरूप
( १५१ )
उनके तीर्थ में 'कुसुम' नामका यक्ष नीलवर्ण का, हरिण की सवारी करने वाला, चार भुजावाला, दाहिनी दो भुजाओं में फल और अभय बाँयीं दो भुजाओं में न्यौला और माला को धारण करनेवाला है ।
उनके तीर्थ में 'अच्युता' ( श्यामा ) नामकी देवी कृष्ण वर्णवाली, पुरुष की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में वरदान और बाण, बाँयी दो भुजाओं में धनुष और अभय को धारण करनेवाली है ॥ ६ ॥
सातवें सुपार्श्वजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप
तथा सप्तमं सुपार्श्व हेमवर्ण स्वस्तिकलाञ्छनं विशाखोत्पन्नं तुलाराशि चेति । तत्तीर्थोत्पन्नं मातङ्गयक्षं नीलवर्षं गजवाहनं चतुर्भुजं बिल्वपाशयुक्त दक्षिणपाणिं नकुलका कुशान्वितवामपाणिं चेति । तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां शान्तादेवीं सुवर्णवर्णा गजवाहनां चतुर्भुजां वरदाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणकर शूलाभययुतवामहस्तां चेति ॥ ७ ॥
सुपार्श्वजिन नाम के सातवें तीर्थंकर हैं, उनके शरीर का वर्ण सुवर्ण वर्ण का है, स्वस्तिक लांबन है, जन्म नक्षत्र विशाखा और तुला राशि है ।
उनके तीर्थ में 'मातंग' नामका यक्ष नीलवर्ण का, हाथी की सवारी करने वाला, चार भुजावाला, दाहिनी दो भुजाओं में बिलु फल और पाश ( फांसी), बाँयी दो जाओ में 'न्यौला और अंकुश को धारण करनेवाला है ।
उनके तीर्थ में 'शान्ता' नामकी देवी सुवर्ण वर्णवाली, हाथी के ऊपर सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में वरदान और माला, बाँयीं दो भुजाओं में शूली और अभय को धारण करनेवाली है ॥ ७ ॥
१ दे० ला० सूरत में छपी हुई च० विं० जि० स्तुति में फल के ठिकाने ढाल बनाया है वह अशुद्ध है । २ आचारदिनकर में दाहिनी दो भुजाओं में वरदान और पाश, बाँयीं दो भुजानों में बीजोरा और अंकुश धारण करना माना है ।
३ श्राचारदिनकर में 'वज्र' लिखा है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org