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(१५२)
वास्तुसारे आठवें चंद्रप्रभजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप
तथाष्टमं चन्द्रप्रभजिनं धवलवर्ण चन्द्रलाञ्छनं अनुराधोत्पन्नं वृश्चिकराशिं चेति । तत्तीर्थोत्पन्नं विजययक्षं हरितवर्ण त्रिनेत्रं हंसवाहनं विभुजं दक्षिणहस्ते चक्र वामे मुद्गरमिति। तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां भृकुटिदेवी पीतवर्णा वराह (बिडाल ?) वाहनां चतुर्भुजां खड्गमुद्गरान्वितदक्षिणभुजा फलकपरशुयुतवामहस्तां चेति ॥८॥
चंद्रप्रभजिन नामके आठवें तीर्थंकर हैं, उनके शरीर का वर्ण सफेद है, चंद्रमा का लांछन है, जन्म नक्षत्र अनुराधा और वृश्चिक राशि है।
उनके तीर्थ में 'विजय' नामका यक्ष 'हरावर्ण वाला, तीन नेत्रवाला, हंस की सवारी करनेवाला, दो भुजावाला, दाहिनी भुजा में चक्र और बाँयें हाथ में मुद्गर को धारण करनेवाला है।
उनके तीर्थ में 'भृकुटि' (ज्याला ) नामकी देवी पीले वर्ण की, वराह या बिलाव (?) की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में खड्ग और मुद्गर, बाँयीं दो भुजाओं में ढाल और फरसा को धारण करनेवाली है ॥८॥
नववें सुविधिजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप... तथा नवमं सुविधिजिनं धवलवर्ण मकरलाञ्छनं मूलनक्षत्रजातं धनराशिं चेति । तत्तीर्थोत्पन्नमजितयक्षं श्वेतवर्ण कूर्मवाहनं चतुर्भुजं मातुलिङ्गाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणपाणिं नकुलकुन्तान्वितवामपाणिं चेति। तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां सुतारादेवी गौरवर्णा वृषवाहनां चतुर्भुजा वरदाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणभुजां कलशाङ्कुशान्वितवामपाणिं चेति॥६॥
१ प्राचारदिनकर में श्यामवर्ण लिखा है । २ चतु० जि. चरित्र में खड्ग लिखा है। . २ प्राचारदिनकर प्रवचनसारोद्धार आदि ग्रंथों में 'वरालक' नामके प्राणी विशेष की सवारी माना है। त्रिषष्टि चरित्र में तथा चतु० जि. चरित्र में हंस वाहन लिखा है। दिगंबराचार्य ने महामहिष (भैसा) की सवारी माना है।
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