________________
जिनेश्वर देव और उनके शासन देवों का स्वरूप (१४६ ) वर्षा मेषवाहनां चतुर्भुजां वरदाक्षसूत्रयुक्तदक्षिणकरां फलाभयान्वितवामकरां चेति ॥ ३ ॥
तीसरे 'सम्भवनाथ' नामके तीर्थंकर हैं, उनका वर्ण सुवर्ण वर्ण का है, घोड़े के लांछन वाले हैं, जन्म नक्षत्र मृगशिर और मिथुन राशि है । - उनके तीर्थ में 'त्रिमुख' नामका यक्ष, तीन मुख, तीन तीन नेत्रवाला, कृष्ण वर्ण का, मोर की सवारी करनेवाला, छः भुजावाला. दाहिनी तीन भुजाओं में नौला, गदा और अभय को धारण करनेवास, बायीं तीन भुजाओं में बीजोरा, 'सांप और माला को धारण करनेवाला है ।
उन्हीं के तीर्थ में दुरितारि' नामकी देवी गौर वर्णवाली, मीढा की सवारी करनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में वरदान और माला, बायीं दो भुजाओं में फल और अभय को धारण करनेवाली है ॥ ३ ॥ . चौथे अभिनंदनजिन और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप
तथा चतुर्थमभिनन्दनजिनं कनकद्युतिं कपिलाञ्छनं श्रवणोत्पन्नं मकरराशिं चेति। तत्तीर्थोत्पन्नमीश्वरयक्ष श्यामवर्ण गजवाहनं चतुर्भुजं मातुलिङ्गाचसूत्रयुतदक्षिणपाणिं नकुलाङ्कुशान्वितवामपाणिं चेति । तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां कालिकादेवीं श्यामवर्णा पद्मासनां चतुर्भुजां वरदपाशाधिष्ठितदचिणभुजां नागाङ्कुशान्वितवामकरां चेति ॥ ४ ॥
____ अभिनंदन नामके चौथे तीर्थकर हैं, उनके शरीर का वर्ण सुवर्ण वर्ण का है, बंदर का लाञ्छन है, जन्म नक्षत्र श्रवण और मकर राशि है।
उनके तीर्थ में 'ईश्वर' नामके यक्ष कृष्णवर्ण का, हाथी की सवारी करने वाला, चार भुजावाला, दाहिनी दो भुजाओं में बीजोरा और माला, बाँयीं दो भुजाओं में न्यौला और अंकुश को धारण करनेवाला है।
१त्रिपष्टीशलाका पुरुष चरित्र में 'रस्सी' धारण करनेवाला माना है।
२ चतुर्विशतिजिनेन्द्र चरित्र में 'फणिभृद्' सर्प लिखा है। 'चतुर्विशतिजिनस्तुति' जो दे० ला. सूरत में सचित्र छपी है उसमें 'फल' के ठिकाने फलक ( ढाल ) दिया है, वह अशुद्ध है क्योंकि ऐसा सर्वत्र देखने में आता है कि एक हाथ में खड्ग हो तो दूसरे हाथ में ढाल होती है । परन्तु खड्ग न हो तो ढाल भी नहीं होनी चाहिये । ढाल का सम्बन्ध खङ्ग के साथ है। ऐसी कई जगह भूल की है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org