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________________ (१४ ) वास्तुसारे दूसरे अजितनाथ और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप - द्वितीयमजितस्वामिनं हेमाभं गजलाञ्छनं रोहिणीजातं वृषराशि चेति । तथा तत्तीर्थोत्पन्नं महायक्षाभिधानं यक्षेश्वरं चतुर्मुखं श्यामवर्ण मातङ्गवाहनमष्टपाणिं वरदमुद्गराक्षसूत्रपागान्वितदक्षिणपाणिं बीजपूरकाभयाङ्कुशशक्तियुक्त वामपाणिपल्लवं चेति । तथा तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नामजिताभिधानां यक्षिणी गौरवर्णा लोहासनाधिरूढां चतुर्भुजां वरदपाशाधिष्ठितदक्षिणकरां वीजपूरकाङ्कुशयुक्तवामकरां चेति ॥ २॥ __ दूसरे 'अजितनाय' नामके तीर्थकर हैं, उनके शरीर का वर्ण सुवर्ण वर्ण का है, वे हाथी के लांछनवाले हैं, गहिणी नक्षत्र में जन्म है और वृष राशि है। उनके तीर्थ में 'महायर' नामका यक्ष चार मुखबाला, कृष्ण वर्ण का, हाथी के उपर सवारी करनेवाला. आठ भुजावाला, दाहिनी चार भुजाओं में वरदान मुद्गर, माला और फांसी को धारण करने वाला, बाँयी चार भुजाओं में बीजोरा, अभय, अंकुश और शक्ति को धारण करनेवाला है। उन्हीं अजितनाथदेव के तीर्थ में 'अजिता' (अजितबला) नामकी यतिणी गौरवर्णवाली 'लोहासन पर बैठनेवाली, चार भुजावाली, दाहिनी दो भुजाओं में वरदान और पाश ( फांसी) को धारण करनेवाली, बाँयीं दो भुजाओं में बीजोग और अंकुश को धारण करनेवाली है ॥२॥ तीसरे संभवनाथ और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप तथा तृतीयं सम्भवनाथं हेमाभं अश्वलाञ्छनं मृगशिरजातं मिथुनराशिं चेति । तस्मिंस्तीर्थे समुत्पन्न त्रिमुखयक्षेश्वरं त्रिमुखं त्रिनेत्रं श्यामवर्ण मयूरवाहनं षड्भुजं नकुलगदाभययुक्तदक्षिणपाणिं मातुलिङ्गानागाचसूत्रान्वितवामहस्तं चेति। तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नां दुरितारिदेवी गौर . प्राचारादिनकर में गौ की सवारी माना है। दे० ला० सूरत में जो 'चतुर्विंशतिजिनानंद स्तुति सचित्र छपी है, उसमें बकरे का वाहन दिया है, वह अशुद्ध मालूम होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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