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जिनेश्वर देव और उनके शासन देवों का स्वरूप जिनेश्वर देव और उनके शासन देवों का स्वरूपजिनेश्वर देव और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप निर्वाणकलिका, प्रवचनसारोद्धार, आचारदिनकर, त्रिषष्टीशलाकापुरुषचरित्र आदि ग्रंथों में निम्न प्रकार है। उनमें प्रथम आदिनाथ
और उनके यक्ष यक्षिणी का स्वरूप
तत्राचं कनकावदातवृषलाञ्छनमुत्तराषाढाजातं धनराशिं चेति । तथा तत्तीर्थोत्पन्नगोमुखयक्षं हेमवर्ण गजवाहनं चतुर्भुजं वरदाचसूत्रयुतदक्षिणपाणिं मातुलिङ्गपाशान्वितवामपाणिं चेति। तथा तस्मिन्नेव तीर्थे समुत्पन्नामप्रतिचक्राभिधानां यक्षिणी हेमवर्णा, गरूडवाहनामष्टभुजां वरदपाणचक्रपाशयुक्तदक्षिणकरां धनुर्वज्रचक्राङ्कुशवामहस्ता चेति ॥ १॥
प्रथम 'आदिनाथ' (ऋषभदेव ) नामके तीर्थंकर सुवर्ण के वर्ण जैसी कान्तिवाले हैं, उनको वृषभ (बैल) का चिन्ह है तथा जन्म नक्षत्र उत्तराषाढा और धनराशि है।
उनके तीर्थ में 'गोमुख' नामका यक्ष सुवर्ण के वर्णवाला, 'हाथी की सवारी करनेवाला, चार भुजावाला, दाहिनी दो भुजाओं में वरदान और माला, बाँयीं हाथों में बीजोरा और पाश ( फांसी) को धारण करनेवाला है।
उन्हीं आदिनाथ के वीर्थ में अप्रतिचक्रा ( चक्रेश्वरी) नामकी देवी सुवर्ण के वर्णवाली, 'गरुड़ की सवारी करनेवाली, 'आठ भुजावाली. दाहिनी चार भुजाओं में वरदान, बाण, फांसी और चक्र बाँयी चार भुजाओं में अनुष्य, वज्र, चक्र और अंकुश को धारण करनेवाली है ।
, प्राचारदिनकर में हाथी और बैल ये दो सवारी माना है।
१ सिद्धाचन आदि कईएक जगह सिंह की सवारी और चार भुजाबाली भी देखने में आती है। एवं श्रीपाल रास में सिंहारूढा मानी है।
रूपमंडन और वसुनंदिकृत प्रतिष्टासार में बारह और चार भुजावाली भी मानी हैं--पाठ भुजा में चक्र, दो भुजा में वज्र, एक भुजा में बीजोरा और एक में वरदान । चार भुजावाली में ऊपर के दोनों हाथों में और नीचे के दो हाथ वरदान और बीजारा युक्त माना है।
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