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________________ प्रासाद प्रकरणम् (१७) चारों कोने पर चार स्तंभ, चारों दिशा में चार द्वार और चार तोरण, चारों मोर छज्जा और कनेर के पुष्प जैसा पांच शिखर (एक मध्य में गुम्मन, उसके चार कोणे पर एक एक गुमटी) करना चाहिये। एक द्वार या दो द्वार या तीन द्वार वाला और एक शिखर ( गुम्मज) वाला भी बना सकते हैं ॥ ६४ ॥ अह भित्ति छज्ज उवमा सुरालयं आउ सुद्ध कायव्वं । समचउरंसं गब्भे तत्तो असवायउ उदएसु ॥६५॥ दीवार और छज्जा युक्त गृहमंदिर बराबर शुभ आय मिला कर करना चाहिये। गर्भ भाग समचौरस और गर्भ भाग से सवाया उदय में करना चाहिये ।। ६५ ।। - गब्भाओ हवइ छज्जु सवाउ सतिहाउ दिवड्दु वित्थारे । वित्थाराओ सवाओ उदयेण य निग्गमे श्रद्धो ॥ ६६ ॥ ___ गर्भ भाग से छज्जा का विस्तार सवाया, अपना तीसरा भाग करके सहित १४ या डेढा होना चाहिये । गर्म के विस्तार से उदय में सवाया और निर्गम आधा होना चाहिये ।। ६६ ॥ छज्जउड थंभ तोरण जुअ उवरे मंडओवमं सिहरं। आलयमज्झे पडिमा छज्जय मज्झम्मि जलवढें ॥ ६७॥ छज्जा, स्तंभ और तोरण युक्त घर मंदिर के ऊपर मण्डप के शिखर के सदृश शिखर अर्थात् गुम्मज करना । गृहमंदिर के मध्य भाग में प्रतिमा रखें और छज्जा में जलवट बनावें ॥ ६७ ॥ गिहदेवालयसिहरे धयदंडं नो करिज्जइ कयावि । आमलसारं कलसं कीरइ इश्र भणिय सत्येहिं ॥ ६८॥ घरमंदिर के शिखर पर ध्वजादंड कभी भी नहीं रखना चाहिये । किन्तु श्रामलसार कलश ही करना चाहिये ऐसा शास्त्रों में कहा है ।। ६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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