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प्रासाद प्रकरणम्
चोवीस जिनालय का क्रम
अग्गे दाहिण-वामे अट्टजिणिंदगेह चउवीसं । मूलसिलागाउ इमं पकीरए जगइ मज्झम्मि ॥ ५६ ॥ चौवीस जिनालयवाला मन्दिर करना हो तो बीच के मुख्य मन्दिर के सामने, दाहिनी और बाँयीं तरफ इन तीनों दिशाओं में आठ आठ देवकुलिका (देहरी) जगती के भीतर करना चाहिये ॥ ५६ ।। चौवीस जिनालय में प्रतिमा का स्थापन क्रम
रिसहाई-जिणपंती सीहदुवारस्स दाहिणदिसाओ। ठाविज्ज सिटिमग्गे सव्वेहिं जिणालए एवं ॥ ५७ ॥
देवकुलिका में सिंहद्वार के दक्षिण दिशा से ( अपनी बाँयीं ओर से ) क्रमशः ऋषभदेव आदि जिनेश्वर की पंक्ति सृष्टिमार्ग से ( पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर इस क्रम से ) स्थापन करना । इस प्रकार समस्त जिनालय में समझना ॥ ५७ ॥
चउवीसतित्थमज्झे जं एगं मूलनायगं हवइ । पंतीइ तस्स ठाणे सरस्सई ठवसु निभंतं ॥५८ ॥
चौवीस तीर्थंकरों में से जो कोई एक मूलनायक हो, उस तीर्थंकर की पंक्ति के स्थान में सरस्वती देवी को स्थापित करना चाहिये ॥ ५८ ॥ बापन जिनालय का क्रम
चउतीस वाम--दाहिण नव पुट्टि अट्ठ पुरओ अ देहरयं । मूलपासाय एगं बवागणजिनालये एवं ॥ ५९॥ चौंतीस देहरी बीच प्रासाद के बाँयीं और दक्षिण तरफ अर्थात् दोनों बगल में सत्रह सत्रह देहरी, नव देहरी पिछले भाग में, आठ देहरी आगे तथा एक मध्य का मुख्य प्रासाद, इस प्रकार कुल बावन जिनालय समझना चाहिये ॥ ५९॥
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