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२ )
वास्तुसारे
और तीसरा प्रासाद प्रकरण में सत्तर (७०) गाथा हैं। कुल दो सौ चौहुँत्तर (२७४)
गाथा हैं ॥ २ ॥
भूमि परीक्षा
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चवीसंगुलभूमी खणेवि पूरिज्ज पुण विसा गत्ता | तेणेव मट्टियाए हीणाहियसमफला नेया ॥ ३ ॥
मकान आदि बनाने की भूमि में २४ अंगुल गहरा खड्डा खोदकर निकली हुई मिट्टी से फिर उसी खड्डे को पूरे । यदि मिट्टी कम हो जाय, खड्डा पूरा भरे नहीं तो हीन फल, बढ़ जाय तो उत्तम और बराबर हो जाय तो समान फल जानना ॥३॥
हसा भरिय जलेण य चरणस्यं गच्छमाण जा सुसइ । ति-दु-इग अंगुल भूमी हम मज्झम उत्तमा जाण ॥ ४ ॥
अथवा उसी ही २४ अंगुल के खड्डे में बराबर पूर्ण जल भरे, पीछे एक सौ
कदम दूर जाकर और वापिस लौटकर उसी ही जलपूर्ण खड्डे को देखे । यदि खड्डे में तीन अंगुल पानी सूख जाय तो अधम, दो अंगुल सूख जाय तो मध्यम और एक अंगुल पानी सूख जाय तो उत्तम भूमि समझना ॥ ४ ॥
वर्णानुकूल भूमि -
सियविपि रुणखत्तिणि पीयवइसी कसिणसुद्दी । मट्टियवरण माणा भूमी निय निय वराणसुक्खयरी ॥५॥
सफेद वर्ण की भूमि ब्राह्मणों को, लाल वर्ण की भूमि चत्रियों को, पीले वर्ण की भूमि वैश्यों को और काले वर्ण की भूमि शूद्रों को, इस प्रकार अपने २ वर्ण के सदृश रङ्गवाली भूमि सुखकारक होती है ॥ ५ ॥
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दिक् साधन -
समभूमि दुकरवित्थरि दुरेह चक्कस्त मज्झि रविसंकं । पढमंतछायगन्भे जमुत्तरा श्रद्धि - उदयत्थं ॥ ६ ॥
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