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* श्री वीतरागाय नमः *
परम जैन चन्द्राङ्गज ठक्कुर 'फेरु' विरचितम्
सिरि-वत्थुसार-पयरणं
मंगलाचरण
सयलसुरासुरविंदं दसण'वराणाणुगं पणमिऊणं ।
गेहाइ-वत्थुसारं संखेवणं भणिस्सामि ॥ १ ॥
सम्यक् दर्शन और सम्यक् ज्ञान वाले ऐसे समस्त सुर और असुर के समूह को नमस्कार करके मकान आदि बनाने की विधि को जानने के लिये वास्तुसार नामक ग्रंथ को संक्षेप से में ( ठक्कुर फेरु) कहता हूं ॥१॥ द्वार गाथा
इगवनसयं च गिहे बिंबपरिक्खस्स गाह तेवना।
तह सत्तरिपासाए दुगसय चउहुत्तरा सव्वे ॥२॥
इस वास्तुसार नाम के ग्रंथ में तीन प्रकरण हैं, इनमें प्रथम गृहवास्तु नाम के प्रकरण में एकसौ इक्कावन (१५१), दूसरा बिंब परीक्षा नाम के प्रकरण में तेवन (५३)
, दंशणनाणाणुगं (१)' ऐसा पाठ युक्तिसंगत मालूम होता है। १ बमिजणं।
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