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प्रासाद प्रकरणम्
(१२६)
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देवों का दृष्टिद्वार
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उत्तरंग धर्व राक्षसयतकीष्टि
इंद्र की धि
-जिन अविहंत राष्टि
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चंडी भैरवदी दृष्टि -
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जनयक्षयक्षिणी दृष्टि वीतरागकी रि
लेप और विजयी
प्रमाtra
१-प्रथम प्रकार से देवों का दृष्टि स्थान ।
वाराहावतारकी
यह प्रकार प्रायः सब आचार्यों को अधिक माननीय है । २-अन्य प्रकार से देवों का दृष्टि स्थान ।
लक्ष्मीनारायण की
शेषशायीकी दृष्टि
पानी की दृष्टि
RSSES
शिवदृष्टि
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Vा देहली
(HEMA
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