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________________ प्रासाद प्रकरणम् (१२३) ध्वजादंड की ऊंचाई इस प्रकार है "दण्डः कार्य स्तृतीयांश शिलातः कलशावधिम् । मध्योऽष्टांशेन हीनांशो ज्येष्ठात् पादोनः कन्यसः॥" खुरशिला से कलश तक ऊंचाई के तीन भाग करना, उनमें से एक तीसरा माग जितना लंबा ध्वजादंड करना, यह ज्येष्ठ मान का ध्वजादंड होता है। यदि ज्येष्ठ मान का पाठवां भाग ज्येष्ठ मान में से कम करें वो मध्यम मान का और चौथा भाग कम करें तो कनिष्ठ मान का ध्वजादंड होता है। प्रकारान्तर से ध्वजादण्ड का मान "प्रासादव्यासमानेन दण्डो ज्येष्ठः प्रकीर्तितः । मध्यो हीनो दशांशेन पञ्चमांशेन कन्यसः ॥" प्रासाद के विस्तार जितना लंबा ध्वजादंड करें तो यह ज्येष्ठमान का होता है। यही ज्येष्ठमान के दंड का दशवा भाग ज्येष्ठमान में से घटा दें तोमध्यम मान का और पांचवां भाग घटा दें तो कनिष्ठमान का ध्वजादंड होता है। ध्वजादण्ड का पर्व (खंड) और चूड़ी का प्रमाण "पर्वमिर्विषमैः कार्यः समग्रन्थी सुखावहः।" दंड में पर्व (खंड) विषम रखें और गांठ (चूडी) सम रखें तो यह सुखकारक है। ध्वजादंड के ऊपर की पाटली का मान "दण्डदैर्घ्यषडाशेन मर्कट्यर्द्धन विस्तृता । श्रद्धचन्द्राकृतिः पार्श्वे घण्टोऽर्द्ध कलशस्तथा ।" दंड की लंबाई का छठा भाग जितनी लंबी मर्कटी (पाटली) करना और लंबाई से आधा विस्तार करना । पाटली के मुख भाग में दो अर्ध चन्द्र का आकार करना। दो तरफ घंटी लगाना और ऊपर मध्य में कलश रखना। अर्द्ध चन्द्र के भाकारवाला भाग पाटली का मुख माना है। यह पाटली का मुख और प्रासाद का मुख एक दिशा में रखना और मुख के पिछाड़ी में ग्वजा लगानी चाहिये। इसी प्रकरण की २३ वीं गाथा में मरी (पाटली) का मान प्रासाद का माठवां भाग माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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