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पास्तुसारे एक हाथ के विस्तारवाले प्रासाद में कनकपुरुष आधा अंगुल का करना चाहिये । पीछे प्रत्येक हाथ पांव २ अंगुल बड़ा बनाना चाहिये । अर्थात् दो हाथ के प्रासाद में पौना अंगुल, तीन हाथ के प्रासाद में एक अंगुल, चार हाथ के प्रासाद में सवा भंगुल इत्यादिक क्रम से पचास हाथ के विस्तारवाले प्रासाद में पौने तेरह अंगुल का कनकपुरुष बनाना चाहिये ॥ ३३ ।। ध्वजादंड का प्रमाण
इग हत्थे पासाए दंडं पउणंगुलं भवे पिंडं । श्रद्धंगुलवुढिकमे जाकरपन्नास-कन्नुदए ॥ ३४॥
___ एक हाथ के विस्तारवाले प्रासाद में ध्वजादंड पौने भंगुल का मोटा बनाना चाहिये । पीछे प्रत्येक हाथ
आधे २ अंगुल क्रम से बढ़ाना चाहिये । अर्थात् दो हाथ के प्रासाद में सवा अंगुल का, तीन हाथ के प्रासाद में पौने दो अंगुल का, चार हाथ के प्रासाद में सवा दो अंगुल का, पांच हाथ के प्रासाद में पौने तीन भंगुल का, इसी क्रम से पचाम हाय के विस्तारवाले प्रासाद में सवा पचीस अंगुल का मोटा ध्वजादंड करना चाहिये। तथा कर्ण के उदय जितना लंबा वजादंड करना चाहिये ॥ ३४ ॥
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ध्वजा3
प्रासादमण्डन में कहा है कि
"एकहस्ते तु प्रासादे दण्डः पादोनमङ्गुलम् ।
कुर्यादाङ्गुला वृद्धि-वित् पञ्चाशद्धस्तकम् " एक हाथ के विस्तारवाले प्रासाद में पौने अंगुल का मोटा ध्वजादंड करना, पीछे पचास हाथ तक प्रत्येक हाथ माधे २ अंगुल मोटाई में पढ़ाना चाहिये ।
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