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________________ (१२०) वास्तुलारे श्रामलसारयमज्झे चंदणखट्टासु सेयपट्टचुत्रा । तस्सुवरि कणयपुरिसं घयपूरतो य वरकलसो ॥२७॥ आमलसार कलश के मध्य भाग में सफेद रेशम के वस्त्र से ढका हुआ चंदन का पलंग रखना। इस पलंग के ऊपर 'कनकपुरुष ( सोने का प्रासाद पुरुष) रखना और इसके पास घी से भरा हुआ तांबे का कलश रखना, यह क्रिया शुभ दिन में करना चाहिये ॥ २७ ॥ पाहणकहिट्टमयो जारिसु पासाउ तारिसो कलसो । जहसत्ति पइट्ठ पच्छा कणयमो रयणजडियो अ॥२८॥ पत्थर, लकड़ी या ईंट उनमें से जिसका प्रासाद बना हो, उसी का ही कलश भी बनाना चाहिये । अर्थात् पत्थर का प्रासाद बना हो तो कलश भी पत्थर का, लकड़ी का प्रासाद हो तो कलश भी लकड़ी का और ईंट का प्रासाद बना हो तो कलश भी ईंट का करना चाहिये । परन्तु प्रतिष्ठा होने के बाद अपनी शक्ति के अनुसार सोने का या रत्न जड़ित का भी करवा सकते हैं ॥२८॥ शुकनास का मान छज्जाउ जाव कंधं इगवीस विभाग करिवि तत्तो अ । नवाइ जावतेरस दीहुदये हवइ सउणासो ॥२१॥ छजा से स्कंध तक के ऊंचाई का इक्कीस भाग करना, उनमें से नव, दश, ग्यारह, बारह व तेरह भाग बराबर लंबा उदय में शुकनास करना ॥ २६ ॥ उदयद्धि विहिन पिंडो पासायनिलाडतिकं च तिलउच्च । तस्सुवरि हवइ सीहो मंडपकलसोदयस्त समा ॥३०॥ उदय से आधा शुकनास का पिंड (मोटाई) करना। यह प्रासाद के ललाटत्रिकका तिलक माना जाता है। उसके ऊपर सिंह मंडप के कलश का उदय बराबर रखना । अर्थात् मंडप की ऊंचाई शुकनास के सिंह से अधिक नहीं होनी चाहिये ॥३०॥ कनकपुरुष का मान भागे की ११ वीं गाथा में कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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