SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रासाद प्रकरणम् प्रामलसार कलश का स्वरूप आम लसारिका उरुशिखर और कूट के मध्य में प्रासाद की मूलरेखा के ऊपर चार लताएँ करना। लता के ऊपर चारों कोने में चार ऋषि रखना और इन ऋषियों के ऊपर आमलसार कलश रखना ।। २५ ॥ मामलसार कलश का स्वरूप'पडिरह-बिकन्नमज्झे अामलसारस्स वित्थरद्धदये । गीवंडयचंडिकामलसारिय पऊण सवाउ इक्किक्के ॥२६॥ दोनों कर्ण के मध्य भाग में प्रतिरथ जितने आमलसार कलश का विस्तार करना और विस्तार से आधा उदय करना । जितना उदय हो उसका चार भाग करना, उनमें पौने भाग का गला, सवा भाग का सला अंडक (मामलसार का गोला ), एक भाग की चंद्रिका और एक भाग की आमलसारिका करना ॥ २६ ॥ प्रासादमण्डन में कहा है कि "रथयोरुभयोर्मध्ये वृत्तमामलसारकम् । उच्छ्रयो विस्तरार्द्धन चतुर्भागैर्विभाजितः॥ ग्रीवा चामलसारस्तु पादोना च सपादकः । चन्द्रिका भागमानेन भागेनामलसारिका ॥" दोनों रथिका के मध्य भाग जितनी आमलसार कलश की गोलाई करना, मामलसार के विस्तार से आधी ऊँचाई करना, ऊँचाई का चार भाग करके पौने भाग का गला, सवा भाग का मामलसार, एक भाग की चंद्रिका और एक भाग की आमलसारिका करना। "पडिरह-बिकन्न मज्झे प्रामलसारस्स वित्थरो होइ । तस्सद्धेण य उदो तं मज्झे ठाण चत्तारि ।। गीवंडयचंडिका आमलसारिय कमेण तब्भागा। पाऊणु सवाईउ इगेगो आमलसारस्स एस विहि ॥" इति पाठान्तरे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy