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वास्तुसारे
( १९३)
रेखमंदिर के शिखर का स्वरूप
...-शिखर-.-.-------
शिखर की गोलाई करने का प्रकार ऐसा है कि-दोनों कर्ण-रेखा के मध्य के विस्तार से चार गुणा व्यासार्द्ध मानकर, दोनों बिन्दु से दो वृत्त खिंचा जाय तो शिखर की गोलाई कमल की पंखडी जैसी अच्छी बनती है।
प्रतिकणे- उपरप
कर्ण-रेवा
उमंग
प्रतिकर्ण - उपरम
कर्ण. रेखा
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शिखरों की रचना
छजउड उवरि तिहु दिसि रहियाजुअबिंब-उवरि-उरसिहरा । कूणेहिं चारि कूडा दाहिण वामग्गि 'दो तिलया ॥२४॥
छज्जा के ऊपर तीनों दिशा में रथिका युक्त बिम्ब रखना और इसके ऊपर उरु शिखर ( उरुशृंग ) करना । चारों कोने के ऊपर चार कूट ( खिखरा-अंडक ) और इसके दाहिनी तथा बाई तरफ दो तिलक बनाना चाहिये ॥ २४ ॥
उरसिहरकूडमज्झे सुमूलरेहा य उवरि चारिलया ।
अंतरकूणेहिं रिसी श्रावलसारो अ तस्सुवरे ॥२५॥ १ 'दुदु' इति पाठान्तरे।
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