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प्रासाद प्रकरणम
( ११७ )
पांच हाथ से अधिक पचास हाथ तक के विस्तारवाले प्रासाद का उदय करना हो तो प्रत्येक हाथ चौदह २ अंगुल हीन करना चाहिये अर्थात् पांच हाथ से अधिक विस्तारवाले प्रासाद की ऊंचाई करना हो तो प्रत्येक हाथ दश २ अंगुल की वृद्धि करना चाहिये । जैसे-छः हाथ के विस्तारवाले प्रासाद की ऊंचाई ५ हाथ और ११ अंगुल, सात हाथ के प्रासाद की ऊंचाई ५ हाथ और २१ अंगुल, आठ हाथ के प्रासाद की ऊंचाई ६ हाथ और ७ अंगुल, इत्यादि क्रम से पचास हाथ के विस्तारवाले प्रासाद की ऊंचाई २३ हाथ और १६ अंगुल होती है । यह प्रासाद का अर्थात् मंडोवर का उदयमान कहा । इसके ऊपर शिखर होता है || २२ ||
प्रासादमण्डन में अन्य प्रकार से कहा है
"पश्वादिदशपर्यन्तं त्रिंशद्यावच्छतार्द्धकम् । हस्ते हस्ते क्रमाद् वृद्धि-र्मनुसूर्या नवाङ्गुला ॥"
पांच से दश हाथ तक के विस्तारवाले प्रासाद का उदय करना हो तो प्रत्येक हाथ चौदह २ अंगुल की, ग्यारह से तीस हाथ तक के विस्तारवाले प्रासाद का उदय करना हो तो प्रत्येक हाथ बारह २ अंगुल की और इकतीस से पचास हाथ तक के विस्तारवाले प्रासाद का उदय करना हो तो प्रत्येक हाथ नव २ अंगुल की वृद्धि करना चाहिये ।
शिखरों की ऊंचाई
दूणु पाऊणु भूमजु नागरु सतिहाउ दिवदु सप्पाउ । दाविsहिरो विड्ढो सिरिखच्छो पऊण दूगो ॥ २३॥
प्रासाद के मान से अमज जाति के शिखर का उदय पौने दुगुणा (१३), नागर जाति के शिखर का उदय अपना तीसरा भाग युक्त ( १ ), डेढ़ा (१३), या सवाया ( ११ ) । द्राविड़ जाति के शिखर का उदय डेढा (१३) और श्रीवत्स शिखर का उदय पौने दुगुना (
) है ॥ २३ ॥
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