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वास्तुसारे प्रासाद ( देवालय ) का मान
पासायस्स पमाणं गणिज सहभित्तिकुंभगथरायो । तस्स य दस भागायोदो दो वित्ती हि रसगब्भे ॥२०॥
बाहर के भाग से कुंभा के थर से दीवार के सहित प्रासाद का प्रमाण गिनना चाहिये । जो मान आवे इसका दश भाग करना, इनमें दो २ भाग की दीवार और छः भाग का गर्भगृह ( गंभारा ) करना चाहिये ॥ २० ॥ प्रासाद के उदय का प्रमाण
इग दु ति चउ पण हत्थे पासाइ खुराउ जा पहारूथरो। नव सत्त पण ति एगं अंगुलजुत्तं कमेणुदयं ॥२१॥
एक हाथ के विस्तारवाले प्रासाद की ऊंचाई एक हाथ और नव अंगुल, दो हाथ के विस्तारवाले प्रासाद की ऊंचाई दो हाथ और सात अंगुल, तीन हाथ के विस्तारवाले प्रासाद की ऊंचाई तीन हाथ और पांच अंगुल, चार हाथ के विस्तार वाले प्रासाद की ऊंचाई चार हाथ और तीन अंगुल, पांच हाथ के विस्तार वाले प्रासाद की ऊंचाई पांच हाथ और एक अंगुल है । यह खुरा से लेकर पहारू थर तक के मंडोवर का उदयमान समझना ॥२१॥ प्रासादमण्डन में भी कहा है कि
"हस्तादिपञ्चपर्यन्तं विस्तारेणोदयः समः ।
स क्रमाद् नवसप्तेषु-रामचन्द्राङ्गुलाधिकम् ॥" एक से पांच हाथ तक के विस्तारवाले प्रासाद की ऊंचाई विस्तार के बराबर करना अर्थात् क्रमशः एक, दो, तीन, चार और पांच हाथ करना, परन्तु इनमें क्रम से नव, सात, पांच, तीन और एक अंगुल जितना अधिक समझना ।
इच्चाइ खबाणते पडिहत्थे चउदसंगुलविहीणा । इन उदयमाण भणियं अथो य उड्ढं भवे सिहरं ॥२२॥
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