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प्रासाद प्रकरणम् प्रासादमण्डन में नागरादि चार प्रकार के मंडोवर का स्वरूप इस प्रकार कहा है१-नागर जाति के मंडोवर का स्वरूप
"वेदवेदेन्दुभक्ते तु छाद्यान्तो पीठमस्तकात् । खुरका पञ्चभागः स्याद् विंशतिः कुम्भकस्तथा ॥१॥ कलशोऽष्टौ द्विसाई तु कर्त्तव्यमन्तरालकम् । कपोतिकाष्टौ मञ्ची च कर्चव्या नवमागिका ॥२॥ त्रिंशत्पश्चयुता जङ्घा तिथ्यंशा उद्गमो भवेत् । वसुभिर्भरणी कार्यों दिग्भागैश्च शिरावटी ॥३॥ अष्टांशोर्वा कपोताली द्विसार्द्धमन्तरालकम् ।
छाद्यं त्रयोदशांशैश्च दशभागैर्विनिर्गमम् ॥ ४ ॥" प्रासाद की पीठ के ऊपर से छज्जा के अन्त्य भाग तक मंडोवर के उदय का १४४ भाग करना । उनमें प्रथम नीचे से खुर पांच भाग का, कुंभ बीस भाग का, कलश आठ भाग का, अंतराल (अंतरपत्र या पुष्पकंठ ) ढाई भाग का, कपोतिका (केवाल ) आठ भाग की, मञ्ची नव भाग की, जंघा पैंतीस भाग की, उद्गम ( उरुजंघा ) पंद्रह भाग का, भरणी पाठ माग की, शिरावटी दश माग की, कपोतालि (केवाल ) पाठ भाग की, अंतराल (पुष्पकंठ) ढाई भाग का और छज्जा तेरह भाग का करना । छज्जा का निर्गम ( निकासू) दश भाग का करना । २-मेरु जाति के मंडोवर का स्वरूप
"मेरुमण्डोवरे मञ्ची भरण्यूर्वेऽष्टभागिका । पञ्चविंशतिका जंघा उद्गमश्च त्रयोदशः ॥५॥
अष्टांशा भरणी शेषं पूर्ववत् कल्पयेत् सुधीः ।" मेरु जाति के प्रासाद के मंडोवर में मञ्ची और भरणी के ऊपर शिरावटी ये दोनों आठ २ भाग की करना । जंघा पच्चीत भाग की, उद्गम ( उरुघा) तेरह भाग की और भरणी आठ भाग की करना । बाकी के थरों का भाग नागर जाति के मंडोवर की तरह समझना । कुल १२६ भाग मंडोवर का जानना ।
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