________________
( ११२)
वास्तुसारे
प्रासाद के अंग
कूणं पडिरह य रहं भदं मुहभद्द मूलअंगाई। नंदीकरणिक पल्लव तिलय तवंगाइ भूसणयं ॥१७॥इति विस्तरः।
कोना, प्रतिरथ, रथ, भद्र और मुखभद्र ये प्रासाद के अंग हैं। तथा नंदी, कर्णिका, पल्लव, तिलक और तवंग आदि प्रासाद के भूषण हैं ॥ १७ ॥ मण्डोवर के तेरह थर
खुर कुंभ कलस कइवलि मच्ची जंघा य छज्जि उरजंघा । भरणि सिरवट्टि छज्ज य वइराडु पहारु तेर थरा ॥१८॥ इगतिय दिवड्दु तिसुकमि पणसड्ढाइग दु दिवड्ड दिवड्ढो अ। दो दिवड्डु दिवड्दु भाया पणवीसं तेर थरमाणं ॥१९॥
खुर, कुंभ, कलश, केवाल. मंची, जंघा, छजि, उरजंघा, भरणी, शिरावटी, छज्जा, वेराडु और पहारू ये मण्डोवर के उदय के तेरह थर हैं ॥ १८॥
उपरोक्त तेरह थरों का प्रमाण क्रमशः एक, तीन, डेढ़, डेढ़, डेढ़, साढ़े पांच, एक, दो, डेढ़, डेढ़, दो, डेढ़ और डेढ़ हैं। अर्थात् पीठ के ऊपर खुरा से लेकर छाद्य के अंत तक मंडोवर के उदय का पच्चीस भाग करना. उनमें नीचे से प्रथम एक भाग का खुरा, तीन भाग का कुंभ, डढ़ भाग का कलश, डेढ़ भाग का केवाल, डेढ़ माग की मंची, साढ़े पांच भाग की जंघा, एक भाग की छाजली, दो भाग की उरजंघा, डेढ़ भाग की भरणी, डेढ़ भाग की शिगवटी, दो भाग का छज्जा, डेढ़ भाग का वेराडु और डेढ़ भाग का पहारु इस प्रकार थर का मान है ॥ १६ ॥
२५भागमंडोबर।
विराष्ट्र
छना
करावरी
Ladki
Kau
उर.
जम
--
214
....
कलश
उर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org